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वाराणसी में मतदाता सूची विवाद: कांग्रेस का आरोप और संतों का स्पष्टीकरण

वाराणसी में मतदाता सूची को लेकर एक विवाद खड़ा हो गया है, जिसमें कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि स्वामी रामकमल दास के 50 से अधिक पुत्र दर्ज हैं। इस पर राम जानकी मठ के संतों ने स्पष्टीकरण देते हुए इसे गुरु-शिष्य परंपरा का हिस्सा बताया है। जानें इस विवाद की जड़ और दोनों पक्षों के तर्क।
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वाराणसी में मतदाता सूची विवाद: कांग्रेस का आरोप और संतों का स्पष्टीकरण

वाराणसी मतदाता सूची विवाद

वाराणसी मतदाता सूची विवाद: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी में मतदाता सूची को लेकर एक नया विवाद उत्पन्न हुआ है। उत्तर प्रदेश कांग्रेस ने 2023 के वाराणसी नगर निगम चुनाव की मतदाता सूची में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए कहा है कि कश्मीरिगंज के वार्ड-51 में एक ही व्यक्ति, स्वामी रामकमल दास के 50 से अधिक पुत्र दर्ज हैं। कांग्रेस ने इसे "वोट चोरी" करार दिया है.


वहीं, राम जानकी मठ के संतों ने इन आरोपों को खारिज करते हुए इसे हिंदू धर्म की गुरु-शिष्य परंपरा का हिस्सा बताया है। इस विवाद की सच्चाई क्या है?


विवाद की जड़ क्या है?


कांग्रेस द्वारा साझा की गई मतदाता सूची के अनुसार, कश्मीरिगंज के बी 24/19 पते पर स्वामी रामकमल दास के नाम से 50 से अधिक व्यक्तियों को उनके पुत्र के रूप में दर्ज किया गया है। इस सूची में सबसे बड़े "पुत्र" की उम्र 72 वर्ष और सबसे छोटे की 28 वर्ष बताई गई है, जिसमें कई व्यक्तियों के जन्म वर्ष समान हैं। कांग्रेस ने इसे असंभव और फर्जीवाड़ा करार देते हुए सवाल उठाया कि एक व्यक्ति के इतने सारे पुत्र कैसे हो सकते हैं और क्या यह वोटर लिस्ट में हेराफेरी का मामला है?


राम जानकी मठ का पक्ष


इस विवाद का केंद्र बी 24/19 कोई साधारण आवासीय पता नहीं, बल्कि वाराणसी का प्रसिद्ध राम जानकी मठ है, जिसकी स्थापना आचार्य रामकमल दास ने की थी। मठ के प्रबंधक रामभरत शास्त्री ने स्पष्ट किया कि मतदाता सूची में दर्ज नाम पूरी तरह वैध हैं और यह हिंदू धर्म की गुरु-शिष्य परंपरा का परिणाम है। उन्होंने बताया कि इस परंपरा के अनुसार, जब कोई व्यक्ति सन्यास ग्रहण करता है, तो वह अपने सांसारिक जीवन को त्याग देता है और अपने गुरु को आध्यात्मिक पिता के रूप में स्वीकार करता है। इस कारण, आधार कार्ड और वोटर आईडी जैसे दस्तावेजों में गुरु का नाम पिता के स्थान पर दर्ज किया जाता है.


शास्त्री ने यह भी बताया कि 2016 में भारत सरकार ने साधु-संन्यासियों को अपने दस्तावेजों में गुरु का नाम पिता के रूप में दर्ज करने की अनुमति दी थी, जो कानूनी रूप से मान्य है। इस प्रकार रामकमल दास के नाम से दर्ज "पुत्र" वास्तव में उनके शिष्य हैं, न कि जैविक संतान.