वासुदेव पेरुमल मंदिर: दक्षिण भारत का ऐतिहासिक धार्मिक स्थल
वासुदेव पेरुमल मंदिर का महत्व
नई दिल्ली - दक्षिण भारत को आध्यात्मिकता और ऐतिहासिकता का गवाह माना जाता है, क्योंकि यहां हिंदू मंदिरों की संख्या पूरे देश में सबसे अधिक है। हर मंदिर की अपनी एक अनोखी कहानी होती है। इसी श्रृंखला में मंदासा का वासुदेव पेरुमल मंदिर भी शामिल है, जो अपने इतिहास और निर्माण के कारण भक्तों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है।
मंदिर का स्थान और इतिहास
आंध्र प्रदेश और ओडिशा की सीमा के निकट श्रीकाकुलम जिले के मंदासा गांव में स्थित वासुदेव पेरुमल मंदिर का कई बार पुनर्निर्माण किया गया है ताकि इसके गौरव और इतिहास को संरक्षित किया जा सके। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है, जहां भक्त अपनी इच्छाओं के साथ आते हैं। कहा जाता है कि यहां की भगवान विष्णु की मूर्ति प्राचीन है और स्वयं प्रकट हुई थी, जिससे भक्तों की आस्था इस मंदिर में अन्य मंदिरों की तुलना में अधिक है। मंदिर में भगवान नारायण अपनी पत्नी के साथ विराजमान हैं।
मंदिर का निर्माण और पुनर्निर्माण
मंदिर का निर्माण 1744 ईस्वी में हुआ था, जिसे श्री हरि हर राजमणि ने अपने शासनकाल में बनवाया था। पहले यह मंदिर राजाओं और मंदासा के शासकों के लिए पूजनीय था, लेकिन समय के साथ संसाधनों की कमी के कारण पूजा-अर्चना में कठिनाई होने लगी।
धार्मिक गुरु का योगदान
1988 में, धार्मिक गुरु श्री चिन्ना श्रीमन्नारायण रामानुज जीयर स्वामी जी ने मंदिर की स्थिति को देखकर पुनर्निर्माण का कार्य शुरू किया। उन्होंने हिंदू धर्म को संरक्षित करने और भगवान नारायण की पूजा को पुनः प्रारंभ करने के लिए मंदिर का पुनर्निर्माण किया। इस कार्य के लिए एक समिति का गठन किया गया, जिसमें गर्भगृह, ध्वज स्तंभ और मुख्य हॉल का निर्माण किया गया।
मंदिर का पुनर्जीवन
2005 में मंदिर को पुनर्जीवित किया गया और विधि-विधान के साथ पूजा का आयोजन शुरू हुआ। यह मंदिर श्री चिन्ना श्रीमन्नारायण रामानुज जीयर स्वामी जी के लिए विशेष महत्व रखता था, क्योंकि यहीं से उनके गुरु पेद्दा जीयर स्वामी जी ने अपनी शिक्षा पूरी की थी। उन्होंने मंदिर के निर्माण के समापन पर अपने गुरु के सम्मान में एक समारोह भी आयोजित किया।
