वृश्चिक संक्रांति: जानें तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
वृश्चिक संक्रांति का महत्व
सूर्य का राशि परिवर्तन और संक्रांति
सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है, तो इसे संक्रांति कहा जाता है। भारतीय संस्कृति में संक्रांति का विशेष महत्व है। साल में कुल 12 संक्रांतियां होती हैं, जिनमें वृश्चिक संक्रांति का विशेष स्थान है। यह दिन आत्मा के कारक सूर्य देव के गोचर का प्रतीक है, जिसका प्रभाव सभी राशियों पर पड़ता है।
वृश्चिक संक्रांति की तिथि
इस वर्ष, सूर्य तुला राशि से निकलकर वृश्चिक राशि में 16 नवंबर 2025 को प्रवेश करेगा। इस दिन को वृश्चिक संक्रांति के रूप में मनाया जाएगा।
शुभ मुहूर्त
संक्रांति के दिन स्नान, दान और पूजा के लिए विशेष समय महत्वपूर्ण होता है।
- वृश्चिक संक्रांति का क्षण: 16 नवंबर, 2025 को दोपहर 01:45 बजे।
- पुण्य काल: 16 नवंबर, 2025 को सुबह 08:02 से दोपहर 01:45 बजे तक।
- महापुण्य काल: 16 नवंबर, 2025 को 11:58 से 01:45 बजे तक।
वृश्चिक संक्रांति का महत्व
यह दिन सूर्य देव की आराधना के लिए समर्पित है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। इसे पितरों को तर्पण देने और दान-पुण्य करने के लिए भी शुभ माना जाता है।
सूर्य का यह गोचर जीवन में आत्मविश्वास और करियर पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। इसे दान और सेवा का पर्व भी कहा जाता है।
पूजा विधि
संक्रांति के दिन सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र नदी में स्नान करें। फिर एक तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें लाल चंदन और गुड़ मिलाकर सूर्य देव को अर्घ्य दें।
अर्घ्य देते समय सूर्य देव के मंत्रों का जाप करें। इस दिन आदित्य दय स्तोत्र का पाठ करना भी शुभ माना जाता है।
दान का महत्व
अपनी सामर्थ्यानुसार जरूरतमंदों को वस्त्र, अन्न, गुड़, तिल या अन्य वस्तुओं का दान करें। गाय का दान इस दिन विशेष रूप से उत्तम माना गया है।
इस प्रकार वृश्चिक संक्रांति पर सूर्य देव की पूजा और दान-पुण्य करने से जीवन में सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
