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शिबू सोरेन: झारखंड के संघर्षशील नेता की जीवनी

शिबू सोरेन, झारखंड की राजनीति में एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व, ने अपने जीवन की शुरुआत समाज सुधार से की। उनके संघर्ष और राजनीतिक यात्रा ने उन्हें झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना करने के लिए प्रेरित किया। जानें उनके राजनीतिक सफर, मुख्यमंत्री के रूप में उनकी भूमिका और विवादों के बावजूद उनकी स्वीकार्यता के बारे में।
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शिबू सोरेन: झारखंड के संघर्षशील नेता की जीवनी

शिबू सोरेन की जीवनी

शिबू सोरेन की जीवनी: झारखंड की राजनीति में एक महत्वपूर्ण और संघर्षशील व्यक्तित्व के रूप में उभरे दिशोम गुरु शिबू सोरेन की यात्रा समाज सुधार से शुरू होकर सत्ता के उच्च शिखरों तक पहुंची। उनका जन्म 11 जनवरी 1944 को हजारीबाग, जो अब रामगढ़ के नाम से जाना जाता है, के नेमरा गांव में हुआ। बचपन में ही अपने पिता को महाजनों की हिंसा में खोने के बाद, उन्होंने अपने जीवन की दिशा तय की। शिक्षा छोड़कर, उन्होंने आदिवासियों को संगठित करने और उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाने का कार्य शुरू किया।


उनका पहला आंदोलन महाजनों के खिलाफ 'धनकटनी आंदोलन' था, जिसने उन्हें एक सामाजिक नेता के रूप में स्थापित किया। इसी दौरान उन्होंने झारखंड के लिए अलग राज्य की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया और 1973 में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की।


राजनीतिक सफर

1980 में, उन्होंने पहली बार लोकसभा के लिए चुनाव जीता। 1986 में, वह झामुमो के महासचिव बने। 1989, 1991, और 1996 में लगातार लोकसभा के लिए चुने जाते रहे। 1998 से 2002 तक, वह राज्यसभा के सदस्य रहे। 2002, 2004, 2009 और 2014 में फिर से लोकसभा पहुंचे। कुल मिलाकर, वह आठ बार लोकसभा सांसद रहे।


मंत्री और मुख्यमंत्री के रूप में भूमिका

2004 में, वह केंद्र सरकार में कोयला मंत्री बने, लेकिन जुलाई में ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। 2005 में, वह पहली बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने, लेकिन 10 दिन में ही उन्हें पद छोड़ना पड़ा। 2006 में, वह दोबारा केंद्र में कोयला मंत्री बने, लेकिन फिर से इस्तीफा देना पड़ा। 2009 में, उन्होंने तीसरी बार मुख्यमंत्री का पद संभाला।


कई विवादों में शामिल

उनकी राजनीतिक यात्रा में कई विवाद भी शामिल रहे, जिनमें आपराधिक आरोप, जेल जाना और उपचुनाव में हार शामिल हैं। फिर भी, वह झारखंड के सबसे प्रभावशाली और स्वीकार्य नेताओं में से एक बने रहे।