शोले की शूटिंग लोकेशंस: 50 साल बाद की यात्रा

शोले की शूटिंग लोकेशंस पर 50 साल बाद का सफर
50 साल पहले रिलीज हुई शोले के शूटिंग स्थानों की अनदेखी तस्वीरें: 1975 में प्रदर्शित हुई इस कल्ट क्लासिक फिल्म ने आज ही के दिन अपनी यात्रा शुरू की थी। अब, कर्नाटक सरकार उस स्थान पर जाने के लिए प्रति व्यक्ति 25 रुपये की फीस ले रही है, जहां शोले की अधिकांश शूटिंग हुई थी। चाहे वह वह पत्थर हो, जिस पर गब्बर (अमजद खान) ने फिल्म में अपनी एंट्री की थी, या वह चट्टानें जिन पर हेमा (बसंती) मालिनी ने नृत्य किया था, ये सभी स्थान आज भी दर्शकों को आकर्षित करते हैं।
फिल्म की लोकेशंस पर उमड़ते फैंस
50 साल बाद भी शोले की शूटिंग लोकेशंस पर कोई खास बदलाव नहीं आया है। घने जंगल, कंटीली झाड़ियां और पथरीले इलाके ही यहां के मुख्य आकर्षण हैं। यहां अक्सर चरवाहे अपने जानवरों के साथ देखे जा सकते हैं, लेकिन इसके बावजूद, लोग इस स्थान को देखने के लिए आते हैं जहां इस फिल्म की शूटिंग हुई थी।
टिकट विक्रेता की राय
पहाड़ी इलाके के तलहटी में स्थित टिकट काउंटर पर एक विक्रेता ने बताया कि हर दिन लगभग 50-60 लोग इस स्थान को देखने के लिए टिकट खरीदते हैं। वीकेंड पर यह संख्या 250 तक पहुंच जाती है। यह टिकट देश के एकमात्र गिद्ध अभयारण्य में प्रवेश के लिए है, और बिना इसे खरीदे, कोई भी शोले की शूटिंग लोकेशंस नहीं देख सकता। फिल्म की शूटिंग 1973 में शुरू हुई थी और इसके बाद रामगढ़ का सेट हटा दिया गया।
लोकेशंस का वर्तमान हाल
बैंगलोर-मैसूर राजमार्ग पर स्थित रामनगरम के गांव में फिल्म की पहचान के अलावा अब कोई अन्य निशान नहीं बचा है। गब्बर का अड्डा अब रामदेवरा बेट्टा हिल्स के नाम से जाना जाता है, और यहां पहुंचने के लिए पैदल चलना पड़ता है। यह स्थान निश्चित रूप से फैंस को आकर्षित करता है।
फैंस की प्रतिक्रियाएं
काम की तलाश में कर्नाटक आए ओडिशा के दमन साहू ने कहा कि जैसे ही उन्हें बेंगलुरु से दूर जाने का काम मिला, वे रामनगरम आए। वहीं, बेंगलुरु से आए आईटी पेशेवर एम अबरार ने फिल्म की कहानी और संवादों की तारीफ की।
गब्बर और वीरू के डायलॉग्स की लोकप्रियता
श्री हनुमान मंदिर के युवा पुजारी किरण कुमार ने बताया कि लोग यहां ट्रैकिंग और शोले के मशहूर डायलॉग्स की रील शूट करने आते हैं। गब्बर का अड्डा यहां आने वाले लोगों में सबसे पसंदीदा है।
गांववालों की भूमिका
रामनगरम के बुजुर्ग सत्यनारायण ने बताया कि कई गांव वालों ने फिल्म में छोटी भूमिकाएं निभाईं और कुछ को बाद में फिल्म उद्योग में काम मिला। वे आज भी अपनी यादों को ताज़ा करने के लिए इकट्ठा होकर फिल्म देखते हैं।