श्रीकृष्ण जन्माष्टमी: पूजा में शंख का महत्व और उपाय

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पूजा में शंख: आज पूरे देश में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। उनका प्राकट्य मध्य रात्रि में रोहिणी नक्षत्र के समय हुआ था। इस दिन भगवान कृष्ण के बाल रूप लड्डू गोपाल की पूजा की जाती है। भगवान कृष्ण से जुड़े प्रतीकों और चिन्हों की पूजा को बहुत शुभ माना जाता है। इसी प्रकार, भगवान श्रीकृष्ण और शंख का गहरा संबंध है। भगवान विष्णु को भी शंख प्रिय है। जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण को शंख में पंचामृत भरकर अभिषेक किया जाता है। शंख में पंचामृत भरकर 'ओम नमो नारायणाय' का उच्चारण करते हुए अभिषेक करना बहुत पुण्यदायक माना जाता है।
पांचजन्य शंख का महत्व
पांचजन्य शंख:
भगवान श्रीकृष्ण का शंख, जिसे पांचजन्य शंख कहा जाता है, समुद्र मंथन से प्राप्त हुआ था। उन्होंने इसी शंखनाद से महाभारत युद्ध की शुरुआत की, जो पापियों के लिए चेतावनी और पांडवों के लिए उत्साह का प्रतीक था।
दक्षिणावर्ती शंख और गोपी चंदन
दक्षिणावर्ती शंख:
जब आप कान्हा का दक्षिणावर्ती शंख से जलाभिषेक करते हैं, तो इस उपाय की शुभता और भी बढ़ जाती है। मान्यता है कि दक्षिणावर्ती शंख से अभिषेक करने पर श्रीकृष्ण के साथ माता लक्ष्मी का आशीर्वाद भी मिलता है। जन्माष्टमी के दिन यह उपाय आर्थिक समस्याओं को दूर करने और धन-धान्य को बढ़ाने में सहायक माना जाता है।
गोपी चंदन:
इस दिन लोग अपनी आस्था के अनुसार कान्हा को रोली, हल्दी, केसर, चंदन आदि का तिलक लगाते हैं और इसे प्रसाद स्वरूप अपने माथे पर धारण करते हैं। कान्हा को लगाए जाने वाले तिलक में गोपी चंदन का विशेष महत्व है, क्योंकि यह ब्रज की रज से बनता है।