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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी: विशेष योग और पूजा मंत्र

इस वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर ग्रहों का अद्भुत संयोग बन रहा है, जिसमें अमृत सिद्धि और सर्वार्थ सिद्धि योग शामिल हैं। जानें इस विशेष दिन पर पूजा के लिए महत्वपूर्ण मंत्र और श्री कृष्ण चालीसा। यह पर्व भक्तों के लिए अत्यधिक फलदायी माना जाता है।
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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी: विशेष योग और पूजा मंत्र

जन्माष्टमी पर अद्भुत ग्रह-नक्षत्रों का संयोग

मथुरा। इस वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर ग्रहों और नक्षत्रों का एक अनोखा मेल देखने को मिल रहा है। आज अमृत सिद्धि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग जैसे विशेष शुभ संयोग बन रहे हैं, जो किसी भी कार्य में सफलता के लिए अत्यंत लाभकारी माने जाते हैं। इसके अलावा वृद्धि योग, ध्रुव योग, श्रीवत्स योग, गजलक्ष्मी योग, ध्वांक्ष योग और बुधादित्य योग भी इस दिन को ज्योतिषीय दृष्टि से अत्यधिक शुभ बना रहे हैं।

इन सभी 6 शुभ योगों के कारण जन्माष्टमी का यह पर्व और भी अधिक पुण्यदायी और फलदायक बन गया है। ऐसे विशेष संयोगों में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करना भक्तों के लिए अत्यधिक लाभकारी माना जाता है।

जन्माष्टमी पर पूजा के लिए 5 मंत्र

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीनन्दनाय नमः

कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने। प्रणतः क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः॥

क्लीं कृष्णाय गोविंदाय गोपीजनवल्लभाय स्वाहा

ॐ कृष्णाय नमः

ॐ देव्किनन्दनाय विधमहे वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्ण:प्रचोदयात।

श्री कृष्ण चालीसा

जय यदुनन्दन जगवन्दन, जय वसुदेव देवकी नन्दन।
जय यशोदा सुत नन्द दुलारे, जय प्रभु भक्तन के दृग तारे।
जय नटनागर नाग नथड्या, कृष्ण कन्हैया धेनु चरड्या।
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो, आओ दीनन कष्ट निवारो।

वंशी मधुर अधर धरि टेरी, होवे पूर्ण विनय यह मेरी।
आओ हरि पुनि माखन चाखो, आज लाज भारत की राखो।
गोल कपोल चिबुक अरुणारे, मुस्कान, मोहिनी डारे। मृदु
रंजित राजिव नयन विशाला, मुकुट बैजन्ती माला। मोर
कुण्डल श्रवण पीतपट आछे, कटि किंकणी काछन काछे।
नील जलज सुन्दर तनु सोहै, छवि लखि सुर नर मुनि मन मोहै।

मस्तक तिलक अलक घुंघराले, आओ कृष्ण बांसुरी वाले।
करि पय पान, पूतनहिं तारयो, अका बका कागा सुर मारयो।
मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला, भये शीतल, लखितहिं नन्दल
लगत-लगत ब्रज चहन बहायो, गोवर्धन नखधारि बचायो।

लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई, मुख मुंह चौदह भुवन दिखाई।
दुष्ट कंस अति उधम मचायो, कोटि कमल जब फूल मंगायो।
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें, चरणचिन्ह दे निर्भय कीन्हैं।
करि गोपिन संग रास विलासा, सबकी पूरण करि अभिलाषा।
केतिक महा असुर संहारियो, कंसहि केस पकड़ि दै मारयो।

मात-पिता की बन्दि छुड़ाई, उग्रसेन कहं राज दिलाई।
महि से मृतक छहों सुत लायो, मातु देवकी शोक मिटायो।
भौमासुर मुर दैत्य संहारी, लाये षट दस सहस कुमारी।
दें भीमहिं तृणचीर संहारा, जरासिंधु राक्षस कहं मारा।

असुरे बकासुर आदिक मारयो, भक्तन के तब कष्ट निवारियो।
दीन सुदामा के दुःख टारयो, तंदुल तीन मूठि’ मुख डारयो।
प्रेम के साग विदुर घर मांगे, दुर्योधन के मेवा त्यागे।
लखी प्रेमकी महिमा भारी, ऐसे श्याम दीन हितकारी।
मारथ के पारध रथ हांके, लिए चक्र कर नहिं बल थांके।

निज गीता के ज्ञान सुनाये, मीरा थी ऐसी मतवाली, विष पी गई बजा कर ताली।
भक्तन हृदय सुधा वर्षाये। राणा भेजा सांप पिटारी, शालिग्राम बने बनवारी।
निज माया तुंम विधिर्हि दिखायो, उरते संशय सकल मिटायो।
व शत निन्दा करि तत्काला, जीवन मुक्त भयो शिशुपाला।
तवहिं द्रोपदी टेर लगाई, दीनानाथ लाज अब जाई।

रितहि वसन बने नन्दलाला, बढ़े चीर भये अरि मुंह काला।
नस अनाथ के नाथ कन्हैया, डूबत भंवर बचावत नइया।
हुन्दरदास आस उर धारी, दद्यादृष्टि कीजै बनवारी।
हाथ सकल मम कुमति निवारो, क्षमहुबेगि अपराध हमारो।
बोलो पट अब दर्शन दीजै, बोलो कृष्ण कन्हैया की जय।

॥ दोहा ॥
यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करे उर धारि।
अष्ट सिद्धि नवनिद्धि फल, लहे पदारथ चारि ॥