श्रीलंका का कच्चतीव द्वीप पर विवादित बयान, भारत की चिंताएँ बढ़ीं
श्रीलंका के विदेश मंत्री ने कच्चतीव द्वीप को लेकर भारत को चेतावनी दी है कि यह श्रीलंका की संपत्ति है और इसे नहीं छोड़ा जाएगा। इस द्वीप का इतिहास और वर्तमान स्थिति जानें। 1974 में भारत ने इसे श्रीलंका को सौंपा था, लेकिन अब यह एक विवादित क्षेत्र बन गया है। जानें इस द्वीप का महत्व और इसके पीछे की कहानी।
Jul 5, 2025, 18:37 IST
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श्रीलंका का कच्चतीव द्वीप पर स्पष्ट रुख
श्रीलंका ने अपने विवादित कच्चतीव द्वीप के संबंध में एक महत्वपूर्ण बयान जारी किया है, जिससे भारत की चिंताएँ बढ़ सकती हैं। श्रीलंका के विदेश मंत्री विजिता बाहेराथ ने स्पष्ट किया कि यह द्वीप श्रीलंका की संपत्ति है और इसे किसी भी स्थिति में नहीं छोड़ा जाएगा। उन्होंने भारत में इस मुद्दे पर चल रही चर्चाओं को आंतरिक राजनीति का हिस्सा बताया, जिसमें भाजपा और कांग्रेस के बीच खींचतान शामिल है। हेराथ ने कहा कि कच्चतीवू श्रीलंका का हिस्सा है और इसे अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत मान्यता प्राप्त है। उल्लेखनीय है कि भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1974 में एक समुद्री संधि के तहत कच्चतीव को श्रीलंका को सौंपा था। इसके बाद 1976 के समझौते में दोनों देशों के मछुआरों को एक-दूसरे के विशेष आर्थिक क्षेत्रों में मछली पकड़ने से प्रतिबंधित किया गया।
कच्चतीव द्वीप का स्थान
कच्चतीव द्वीप कहाँ है?
कच्चतीव द्वीप पाक जलडमरूमध्य में स्थित एक छोटा निर्जन द्वीप है, जो बंगाल की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ता है। यह क्षेत्र भारत और श्रीलंका के बीच विवादित है, जिस पर भारत ने 1976 तक दावा किया था, लेकिन वर्तमान में इसका प्रबंधन श्रीलंका द्वारा किया जा रहा है।
कच्चतीव द्वीप का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
द्वीप का इतिहास
कच्चतीव द्वीप का निर्माण 14वीं शताब्दी में ज्वालामुखी विस्फोट के कारण हुआ था। पहले यह रामनाड (वर्तमान रामनाथपुरम, तमिलनाडु) के राजा के अधीन था और बाद में यह मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा बन गया। 1921 में, श्रीलंका और भारत दोनों ने इस भूमि पर मछली पकड़ने के लिए दावा किया, जिससे विवाद अनसुलझा रहा। ब्रिटिश शासन के दौरान, 285 एकड़ भूमि का प्रशासन भारत और श्रीलंका द्वारा संयुक्त रूप से किया जाता था।