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संघ और कम्युनिज्म: एक शताब्दी की यात्रा

इस लेख में हम संघ और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना के सौ साल की यात्रा पर चर्चा करेंगे। जानें कैसे संघ की विचारधारा ने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मोर्चों पर प्रगति की है, जबकि कम्युनिस्ट आंदोलन कमजोर पड़ता जा रहा है। क्या संघ वास्तव में मुस्लिम विरोधी है? इस पर भी विचार किया जाएगा।
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संघ और कम्युनिज्म: एक शताब्दी की यात्रा

संघ की स्थापना और कम्युनिस्ट पार्टी का उदय

यह एक दिलचस्प संयोग है कि एक सदी पहले 'राष्ट्र प्रथम' के सिद्धांत के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई, और इसके कुछ ही महीनों बाद 26 दिसंबर 1925 को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का गठन हुआ। जब हम इस सौ साल की यात्रा पर नजर डालते हैं, तो यह स्पष्ट होता है कि भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन भारत में कमजोर पड़ता नजर आ रहा है, जबकि संघ की विचारधारा लगातार प्रगति कर रही है। संघ की वैचारिकी सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक और राजनीतिक क्षेत्रों में आगे बढ़ रही है।


दोनों विचारधाराओं की शुरुआत एक ही समय पर हुई, लेकिन उनमें एक महत्वपूर्ण भिन्नता रही। वामपंथी आंदोलन ने हमेशा संघ की विचारधारा और संगठन को निशाना बनाया। संघ के खिलाफ कई बार सत्ता के सहयोग से और अन्य तरीकों से दुष्प्रचार किया गया। एक सामान्य धारणा यह है कि संघ मुसलमानों के खिलाफ है। यह भी स्थापित करने की कोशिश की गई कि संघ भारत से मुस्लिम धर्म का समूल नाश चाहता है। लेकिन वास्तविकता कुछ और है। संघ की प्रतिनिधि सभा के सदस्य और वरिष्ठ कार्यकर्ता इंद्रेश कुमार के नेतृत्व में 2002 से 'राष्ट्रीय मुस्लिम मंच' का गठन किया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य इस्लाम मानने वाले भारतीयों के बीच 'राष्ट्र प्रथम' की भावना को बढ़ावा देना है। संघ का कोई भी उद्देश्य नहीं है कि भारत मुसलमानों से मुक्त हो। संघ का प्रयास है कि मुसलमानों की छवि को बदला जाए और राष्ट्र निर्माण में उनकी भूमिका को स्वीकार किया जाए।


संघ के दूसरे सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर की पुस्तक 'ब्रंच ऑफ थॉट' का अक्सर हवाला देकर संघ को मुस्लिम विरोधी और सांप्रदायिक बताया जाता है। वामपंथी बुद्धिजीवी जब भी संघ पर हमला करते हैं, तो वे इसी पुस्तक का उल्लेख करते हैं। संघ के मौजूदा सरसंघचालक मोहन राव भागवत ने इस विषय पर अपनी राय स्पष्ट की है। सितंबर 2018 में दिल्ली के विज्ञान भवन में एक विशेष व्याख्यान के दौरान भागवत ने कहा था कि 'ब्रंच ऑफ थॉट' में जो बातें कही गई हैं, वे विशेष परिस्थितियों में थीं और शाश्वत नहीं हैं।


भागवत ने यह भी कहा कि संघ कोई संकीर्ण संगठन नहीं है और समय के साथ विचारों का विकास होता है। उन्होंने मुसलमानों को अपने ही मानते हुए कहा कि 'हम एक देश की संतान हैं, भाई-भाई की तरह रहना चाहिए।' संघ पर यह आरोप भी लगता है कि वह जातिवादी है, लेकिन भागवत ने कहा कि संघ में अंतरजातीय विवाह करने वालों की संख्या सबसे अधिक है।


संघ और महात्मा गांधी के संबंधों पर भी बहुत कुछ लिखा गया है। गांधीजी ने 1934 में संघ के शिविर का दौरा किया था और वहां जातिगत भेदभाव का कोई प्रमाण नहीं पाया। गांधीजी ने संघ के कार्यकर्ताओं से कहा था कि आत्म-बलिदान और पवित्र उद्देश्य के साथ काम करना आवश्यक है। भागवत ने कहा कि संघ का उद्देश्य सभी को जोड़ना है और भारत को मजबूत बनाना है।