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संविधान हत्या दिवस: एक काला अध्याय और उसके सबक

संविधान हत्या दिवस, 25 जून 1975 को भारत में आपातकाल की घोषणा के दिन को याद करता है। यह दिन हमें स्वतंत्रता की नाजुकता और लोकतंत्र की रक्षा के महत्व का एहसास कराता है। इस लेख में हम उस काले अध्याय की चर्चा करेंगे, जो आज भी हमारे लिए एक चेतावनी है। जानें इस दिन के महत्व, उद्धरण और उस समय के संघर्ष के बारे में, जो हमें यह सिखाते हैं कि लोकतंत्र की रक्षा करना हमारी जिम्मेदारी है।
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संविधान हत्या दिवस: एक काला अध्याय और उसके सबक

संविधान हत्या दिवस की महत्ता

संविधान हत्या दिवस पर विचार और संदेश: संविधान हत्या दिवस की चर्चा करते ही एक ठंडी सिहरन मन में दौड़ जाती है। 25 जून 1975 की रात, जब भारत का लोकतंत्र एक झटके में चीत्कार उठा। आपातकाल की घोषणा हुई, और देश की आत्मा पर काले स्याही के छींटे पड़ गए। आज, 50 साल बाद भी वह समय हमें यह याद दिलाता है कि स्वतंत्रता कितनी नाजुक हो सकती है। इस लेख में हम उस काले अध्याय को पुनः स्मरण करेंगे, संविधान हत्या दिवस से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों को जानेंगे, और समझेंगे कि आज के भारत में इसका क्या महत्व है। आइए, इतिहास के उस पन्ने को पलटें, जो हमें आज भी सबक देता है।


संविधान हत्या दिवस पर उद्धरण

संविधान हत्या दिवस हमें यह याद दिलाता है कि जब संविधान का अपमान होता है, तो क्या परिणाम होते हैं। यह उन लोगों को श्रद्धांजलि है, जिन्होंने आपातकाल का सामना किया। - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी


हर साल 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाया जाएगा, ताकि लोग आपातकाल के अत्याचारों को न भूलें। - गृह मंत्री अमित शाह


जो लोग खुद को संविधान का रक्षक मानते हैं, उनके दिल में इस निर्णय से दर्द हो रहा है।


यह दिन उन लाखों लोगों के संघर्ष को याद करता है, जिन्होंने आपातकाल के दंश को सहा और लोकतंत्र की रक्षा की।


आपातकाल: एक काला अध्याय

आपातकाल: वो रात जब लोकतंत्र सो गया


25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की। इसका कारण? इलाहाबाद हाई कोर्ट का एक निर्णय, जिसमें उनकी लोकसभा सदस्यता रद्द कर दी गई थी। लेकिन यह केवल शुरुआत थी। रातों-रात प्रेस की स्वतंत्रता छीन ली गई। विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया। जयप्रकाश नारायण जैसे आंदोलनकारी, जिन्होंने देश को आजादी दिलाने में योगदान दिया, वे भी सलाखों के पीछे थे। संविधान के अनुच्छेद 352 का दुरुपयोग हुआ, और देश में एक अनकहा डर फैल गया। लोग फुसफुसाकर बात करते थे, क्योंकि दीवारों के भी कान हो गए थे।


संविधान हत्या दिवस का महत्व

संविधान हत्या दिवस केवल एक तारीख नहीं, बल्कि एक चेतावनी है। यह हमें याद दिलाता है कि लोकतंत्र को हल्के में लेना कितना खतरनाक हो सकता है। आज जब हम सोशल मीडिया पर अपनी बात बेझिझक रखते हैं, तब उस दौर की कल्पना करें जब एक गलत बात कहने की सजा जेल थी। इस दिन को मनाने का उद्देश्य युवाओं को जागरूक करना है। स्कूलों और कॉलेजों में इस दिन विशेष कार्यक्रम आयोजित होते हैं। लोग आपातकाल के खिलाफ लिखे उद्धरण साझा करते हैं, जो उस समय की पीड़ा और प्रतिरोध को दर्शाते हैं।


प्रासंगिक उद्धरण

वो उद्धरण जो आज भी प्रासंगिक हैं


आपातकाल के दौरान कई नेताओं, लेखकों और विचारकों ने अपने शब्दों से प्रतिरोध जताया। जयप्रकाश नारायण का कथन, “सिंहासन खाली करो कि जनता आती है,” आज भी रोंगटे खड़े कर देता है। या फिर रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियाँ, जो तानाशाही के खिलाफ आग उगलती थीं। ये उद्धरण केवल शब्द नहीं, बल्कि उस समय की जंग का हथियार थे। आज भी लोग इन्हें सोशल मीडिया पर साझा करते हैं, ताकि नई पीढ़ी उस बलिदान को समझ सके। इन उद्धरणों में वो दर्द और हिम्मत है, जो हमें सिखाती है कि लोकतंत्र की रक्षा करना हमारी जिम्मेदारी है।


संविधान हत्या दिवस का संदेश

संविधान 25 जून को मारा गया, और यह देश के लिए एक काला दिन है। कांग्रेस को माफी मांगनी चाहिए।


यह दिन उन लाखों लोगों के संघर्ष को याद करता है जिन्होंने आपातकाल का सामना किया और लोकतंत्र की रक्षा की।


जब से हमने संविधान हत्या दिवस मनाने का निर्णय लिया है, तब से कुछ लोग जो खुद को संविधान का रक्षक मानते हैं, बेचैन हो गए हैं।


संविधान हत्या दिवस पर उद्धरण

भाजपा हमेशा संविधान की हत्या करने वालों के खिलाफ लड़ी है। हमारे कार्यकर्ता पूरे देश में इस दिन को मनाएंगे।


यह काला दिन हर राष्ट्रवादी नागरिक के लिए याद रखने योग्य है। आज जब हम सोशल मीडिया पर खुलकर बोलते हैं, तब उस समय की कल्पना करें, जब एक गलत शब्द जेल भेज सकता था।