संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर बहस: क्या शशि थरूर होंगे अनुपस्थित?

संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा का आगाज़
संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर बहस: आज सोमवार को संसद के मानसून सत्र में पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा शुरू होने जा रही है। पिछले सप्ताह की कार्यवाही में बाधाओं के बीच यह बहस अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है। इस चर्चा में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या कांग्रेस सांसद शशि थरूर को बोलने का अवसर मिलेगा या नहीं।
थरूर की अनुपस्थिति से उठ सकते हैं सवाल
कांग्रेस के सूत्रों के अनुसार, शशि थरूर इस बहस में भाग नहीं लेंगे। उनका नाम कांग्रेस संसदीय दल (CPP) को नहीं भेजा गया है, जो कि आवश्यक प्रक्रिया का हिस्सा है। सूत्रों ने बताया, "थरूर के ऑपरेशन सिंदूर पर बोलने की संभावना कम है। जो सांसद बोलना चाहते हैं, उन्हें अपना अनुरोध CPP कार्यालय को भेजना होता है, लेकिन थरूर ने ऐसा नहीं किया है।"
सियासी समीकरणों पर असर
यदि शशि थरूर इस बहस से दूर रहते हैं, तो यह कांग्रेस के आंतरिक समीकरणों पर कई सवाल खड़े कर सकता है। थरूर हाल ही में भारत-पाक तनाव पर बने सरकारी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर अमेरिका समेत कई देशों की यात्रा पर गए थे, जो कांग्रेस की आधिकारिक नीति से भिन्न माना गया।
सरकार और विपक्ष के प्रमुख नेता आमने-सामने
आज की बहस में सरकार और विपक्ष दोनों ही अपने प्रमुख नेताओं को मैदान में उतारने की तैयारी कर रहे हैं। गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस जयशंकर सरकार का पक्ष रखेंगे। हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बोलने की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
विपक्ष की ओर से बहस की शुरुआत कौन करेगा?
यदि विपक्ष को बहस की शुरुआत करने का अवसर मिलता है, तो यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन नेता मोर्चा संभालता है। राहुल गांधी को एक संभावित विकल्प के रूप में देखा जा रहा है, हालांकि वह पहले भी अपने डिप्टी गौरव गोगोई जैसे नेताओं को शुरुआत करने का मौका दे चुके हैं।
16 घंटे की बहस, मुख्य मुद्दे
सरकार और विपक्ष के बीच सहमति के अनुसार, पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर पर लोकसभा और राज्यसभा में 16 घंटे की बहस होगी। इस दौरान 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले में 26 नागरिकों की मौत और सरकार की प्रतिक्रिया पर चर्चा की जाएगी।
विपक्ष ने खुफिया विफलता के आरोप लगाए
राहुल गांधी और अन्य विपक्षी नेताओं ने सरकार पर खुफिया तंत्र की विफलता और अंतरराष्ट्रीय समर्थन की कमी को लेकर सवाल उठाए हैं। उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस बयान को भी मुद्दा बनाया है, जिसमें उन्होंने भारत-पाक के बीच मध्यस्थता की बात कही थी, जबकि भारत सरकार ने इसे खारिज कर दिया था।