सऊदी अरब और पाकिस्तान के रक्षा समझौते पर भारत की चिंताएं: क्या हैं इसके प्रभाव?

भारत की चिंताएं सऊदी-पाक रक्षा समझौते पर
भारत की प्रतिक्रिया: हाल ही में सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हुए रणनीतिक रक्षा समझौते ने भारत में चिंता की लहर पैदा कर दी है। इस समझौते के अनुसार, यदि किसी एक देश पर हमला होता है, तो इसे दोनों देशों पर हमला माना जाएगा। इस पर हस्ताक्षर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने किए। यह घटनाक्रम ऐसे समय में हुआ है जब खाड़ी क्षेत्र पहले से ही हमास और इजरायल के बीच संघर्ष के कारण तनाव में है।
पूर्व राजनयिकों की राय
भारत के पूर्व राजनयिक वेणु राजामणि और अशोक कंठ ने इसे भारत के लिए नकारात्मक घटनाक्रम बताया। वेणु राजामणि, जो 2017-2020 के बीच नीदरलैंड में भारत के राजदूत रहे, ने कहा कि पाकिस्तान की खाड़ी और इस्लामी देशों के साथ बढ़ती नजदीकी भारत की क्षेत्रीय रणनीति को प्रभावित कर सकती है। उन्होंने चेतावनी दी कि भारत को सऊदी अरब के साथ अपने संबंधों को "सावधानीपूर्वक और कुशलता से" प्रबंधित करना होगा।
भारत-सऊदी संबंधों की मजबूती
हालांकि, दोनों राजनयिकों ने यह भी कहा कि भारत और सऊदी अरब के बीच संबंध पहले से ही मजबूत और बहुआयामी हैं। अशोक कंठ ने कहा कि सऊदी का यह कदम भारत के लिए चिंता का विषय है, लेकिन इससे दीर्घकालिक संबंधों पर गंभीर प्रभाव नहीं पड़ेगा। उन्होंने सुझाव दिया कि भारत को जल्दबाजी में निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए क्योंकि यह संबंध "कई स्तंभों पर आधारित हैं"।
विदेश मंत्रालय की स्थिति
भारत सरकार इस घटनाक्रम से अवगत है। विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि वह इस समझौते के क्षेत्रीय और राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रभावों का विश्लेषण करेगा। साथ ही, यह भी संकेत दिया गया है कि भारत सऊदी अरब के साथ संवाद जारी रखेगा और संबंधों को स्थिर बनाए रखेगा।
भविष्य की चुनौतियाँ
भारत के सामने अब यह चुनौती है कि वह पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच बढ़ती नजदीकियों को गंभीरता से लेते हुए अपनी सुरक्षा रणनीति को मजबूत करे, जबकि सऊदी अरब के साथ आर्थिक, ऊर्जा, और रणनीतिक साझेदारी को बनाए रखे। इस स्थिति में संतुलन बनाए रखना भारत की कूटनीतिक कुशलता की परीक्षा होगी।