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सरस्वती नदी के पुराने मार्गों से बाढ़ नियंत्रण में मदद मिलेगी

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के प्रो. एआर चौधरी ने सरस्वती नदी के पुराने मार्गों का नक्शा तैयार किया है, जो बाढ़ नियंत्रण में सहायक हो सकते हैं। ये मार्ग जल निकासी के सुरक्षित रास्ते प्रदान करते हैं, जिससे खेतों और बस्तियों को नुकसान से बचाया जा सकता है। जानें कैसे इन मार्गों की पुनर्जीवित प्रक्रिया बाढ़ और सूखे दोनों के समय में फायदेमंद साबित हो सकती है।
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सरस्वती नदी के पुराने मार्गों से बाढ़ नियंत्रण में मदद मिलेगी

सरस्वती नदी के पुराने मार्गों का महत्व

कुरुक्षेत्र समाचार, (कुरुक्षेत्र) : सरस्वती नदी का प्राचीन मार्ग हरियाणा और उत्तर भारत में बाढ़ से सुरक्षा प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर रिसर्च ऑन सरस्वती नदी के निदेशक और जियोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. एआर चौधरी ने 3,000 किलोमीटर से अधिक का नक्शा तैयार किया है, जिसमें सरस्वती नदी के साथ-साथ सहायक नदियों जैसे मारकंडा, छगर, टांगरी और चौतंग को भी शामिल किया गया है।


प्रो. चौधरी ने बताया कि बाढ़ नियंत्रण के लिए ये प्राचीन नदी मार्ग अत्यधिक प्रभावी हो सकते हैं। ये मार्ग जल निकासी के सुरक्षित रास्ते प्रदान करते हैं, जो बारिश और बाढ़ के दौरान अतिरिक्त पानी को अवशोषित करते हैं, जिससे खेतों और बस्तियों को नुकसान से बचाया जा सकता है। हरियाणा में अब तक सरस्वती के 3,000 किलोमीटर से अधिक पुराने मार्गों की पहचान की जा चुकी है, जो प्राकृतिक जल निकासी का एक मजबूत नेटवर्क बनाते हैं।


यदि इन मार्गों की खुदाई की जाए और मिट्टी तथा मलबा हटाया जाए, तो उनकी जल सोखने और बहने की क्षमता को फिर से बहाल किया जा सकता है। इससे बाढ़ का पानी तेजी से निकाला जा सकेगा। बाढ़ और सूखे से बचाव के लिए सरकार इस पर एक कार्य योजना तैयार कर सकती है।


पुराने नदी मार्गों की पुनर्जीवित प्रक्रिया

पुराने नदी मार्ग कैसे शुरू होंगे?


प्रो. एआर चौधरी ने बताया कि सबसे पहले सेटेलाइट डेटा और स्थल सर्वेक्षण के माध्यम से पुराने नदी मार्ग का नक्शा तैयार किया जाता है। इसके बाद आमतौर पर 4 मीटर या उससे अधिक गहराई तक खुदाई की जाती है। पुराने नदी मार्ग को चालू रखने के लिए समय-समय पर सिल्ट यानी मिट्टी की ऊपरी परत को हटाना आवश्यक होता है। कई स्थानों पर इन्हें मानसूनी जल भंडारण के लिए भी उपयोग किया जा सकता है।


इससे बाढ़ और सूखे दोनों समय में ये मार्ग उपयोगी साबित होंगे। प्रो. चौधरी ने कहा कि सरस्वती नदी के कई पुराने मार्गों का संबंध अच्छे भूजल स्रोतों से भी है। खुदाई करने पर इनमें पीने योग्य पानी भी पाया गया है। इस प्रकार, ये न केवल बाढ़ नियंत्रण में सहायक होंगे, बल्कि सूखे के समय ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल उपलब्ध कराने में भी मदद करेंगे।


खेतों और घरों की सुरक्षा

खेत और घर बचेंगे नुकसान से


प्रो. एआर चौधरी ने कहा कि पुराने नदी मार्गों को पुनर्जीवित करने से बाढ़ का पानी नियंत्रित दिशा में बहाकर खेतों और घरों को नुकसान से बचाया जा सकता है। ये मार्ग प्राकृतिक जल प्रवाह को बनाए रखते हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में बाढ़ के पानी को दूर-दूर तक फैलाकर राहत प्रदान करते हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि सूखे के समय ये जल स्रोत बन जाते हैं, जिससे कृत्रिम ड्रेनेज सिस्टम पर निर्भरता कम हो जाती है।


आधुनिक तकनीक का उपयोग

आधुनिक तकनीक से लगाया जाता है पता


प्रो. एआर चौधरी ने बताया कि पुराने नदी मार्गों की पहचान के लिए रिमोट सेंसिंग, डिजिटल एलिवेशन मॉडल्स और फील्ड सर्वेक्षण का सहारा लिया जाता है। इससे इन मार्गों की सटीक स्थिति का पता चलता है, ताकि बाढ़ प्रभावित जिलों के लिए बेहतर आपदा प्रबंधन और कृषि योजनाएं बनाई जा सकें।