सीबीआई ने कुलदीप सेंगर की जमानत को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी
सीबीआई की याचिका
नई दिल्ली - उन्नाव दुष्कर्म मामले में दोषी ठहराए गए पूर्व भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को दिल्ली हाईकोर्ट से मिली जमानत के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर की है।
जमानत को चुनौती
सीबीआई ने याचिका में कहा है कि हाईकोर्ट का यह निष्कर्ष गलत है कि एक विधायक पॉक्सो एक्ट के सेक्शन 5 के तहत 'पब्लिक सर्वेंट' की श्रेणी में नहीं आता। याचिका में सीबीआई ने यह भी बताया कि बच्चों के यौन शोषण से संबंधित मामलों में सुरक्षा प्रदान करने वाले पॉक्सो एक्ट के महत्व को समझने में दिल्ली हाईकोर्ट ने गलती की है। कोर्ट ने इस कानून के उद्देश्य और भावना को ध्यान में नहीं रखा।
पब्लिक सर्वेंट की परिभाषा
सीबीआई के अनुसार, यदि पॉक्सो एक्ट के सेक्शन 5(सी) को सही तरीके से देखा जाए, तो यह स्पष्ट होता है कि इसमें 'पब्लिक सर्वेंट' का अर्थ उन सभी व्यक्तियों से है जो अपनी शक्ति, पद, अधिकार या हैसियत का दुरुपयोग करते हैं। विधायक का पद संवैधानिक है और इसके साथ शक्ति और जनता का विश्वास जुड़ा होता है। ऐसे में सेंगर को 'पब्लिक सर्वेंट' न मानना गलत है।
सुरक्षा का खतरा
सीबीआई ने याचिका में यह भी कहा है कि यदि सेंगर को रिहा किया जाता है, तो यह पीड़ित की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन सकता है। सेंगर एक प्रभावशाली व्यक्ति हैं, जिनके पास धन और बाहुबल है। जमानत मिलने पर वह पीड़ित और उसके परिवार को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
जमानत का अधिकार
सीबीआई ने यह भी स्पष्ट किया कि बच्चों के साथ यौन शोषण जैसे गंभीर अपराध में केवल जेल में समय बिताने के कारण कोई जमानत का हकदार नहीं होता। उम्रकैद की सजा पाए व्यक्ति की सजा निलंबित करने का निर्णय तभी लिया जा सकता है जब कोर्ट पहले से संतुष्ट हो कि आरोपी का उस मामले में दोष नहीं है। सीबीआई के अनुसार, हाईकोर्ट ने कुलदीप सेंगर के आपराधिक इतिहास और इस फैसले के कारण न्यायिक व्यवस्था में लोगों के विश्वास पर पड़ने वाले प्रभाव को नजरअंदाज किया है।
