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सुंदरबन के मैंग्रोव जंगलों का संकट: जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

सुंदरबन का मैंग्रोव जंगल, जो समुद्र से सुरक्षा प्रदान करता है, जलवायु परिवर्तन के कारण संकट में है। भंगादूनी और जम्बूद्वीप जैसे द्वीप तेजी से समुद्र में समा रहे हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि स्थिति में सुधार नहीं हुआ, तो 2050 तक कई तटीय शहरों को खतरा हो सकता है। FSI की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में मैंग्रोव क्षेत्र में कमी आई है। जानें इस संकट के पीछे के कारण और इसके प्रभाव।
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सुंदरबन के मैंग्रोव जंगलों का संकट: जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

नई दिल्ली में मैंग्रोव जंगलों की स्थिति


नई दिल्ली: सुंदरबन का विशाल मैंग्रोव वन, जो समुद्र से आने वाले खतरों के खिलाफ एक मजबूत प्राकृतिक सुरक्षा कवच माना जाता है, अब जलवायु परिवर्तन के कारण कमजोर हो रहा है। पिछले तीन दशकों में भंगादूनी और जम्बूद्वीप जैसे महत्वपूर्ण द्वीप समुद्र में समाने के कगार पर हैं। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (FSI) की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, देश में कुल 4,992 वर्ग किलोमीटर का मैंग्रोव क्षेत्र बचा है, लेकिन 2021 से इसमें 7.43 वर्ग किलोमीटर की कमी आई है।


वैज्ञानिकों की राय

पश्चिम बंगाल में सुंदरबन का मैंग्रोव क्षेत्र 2 वर्ग किलोमीटर घट गया है, जबकि गुजरात में यह कमी 36 वर्ग किलोमीटर तक पहुंच गई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि स्थिति में सुधार नहीं हुआ, तो 2050 तक देश के 113 तटीय शहर समुद्र के बढ़ते स्तर के प्रभाव में आ सकते हैं।


भंगादूनी और जम्बूद्वीप का अस्तित्व

सुंदरबन के दक्षिणी किनारे पर स्थित भंगादूनी द्वीप कभी घने मैंग्रोव जंगलों से भरा हुआ था। 1975 में किए गए सर्वेक्षण में यह द्वीप स्पष्ट रूप से दिखाई देता था, लेकिन 1991 तक लैंडसैट-5 की तस्वीरों से पता चला कि समुद्री लहरों और बढ़ती खारापन के कारण इसकी भूमि कम होती जा रही थी। समय के साथ, समुद्र ने इसकी बड़ी हिस्सेदारी निगल ली और 2016 तक इसका आकार लगभग आधा रह गया। FSI के शोधकर्ता अनुपम घोष के अनुसार, 1991 से 2016 के बीच 23 वर्ग किलोमीटर भूमि समुद्र में चली गई।


समुद्री लहरों का प्रभाव

जम्बूद्वीप की स्थिति भी इसी तरह बिगड़ी है। 1991 की तुलना में 2016 तक इसका आकार न केवल कम हुआ, बल्कि इसकी स्थिति भी समुद्री लहरों के कारण बदल गई। 2024-25 के सैटेलाइट डेटा के अनुसार, सुंदरबन की भूमि हर साल लगभग 3 सेंटीमीटर धंस रही है, जो वैश्विक औसत से दोगुनी तेज दर है।


जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

जलवायु परिवर्तन मुख्य कारण है, जिसके चलते समुद्र का स्तर लगातार बढ़ रहा है। IPCC की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, बढ़ते तापमान के कारण समुद्र के पानी का फैलाव और हिमालयी ग्लेशियरों का पिघलना तटीय क्षेत्रों के लिए गंभीर खतरा है। सुंदरबन में समुद्र का स्तर प्रतिवर्ष 3.9 मिमी की दर से बढ़ रहा है, जो वैश्विक औसत 1.7 मिमी का लगभग दोगुना है।


FSI रिपोर्ट (2023) के अनुसार मैंग्रोव की स्थिति

भारत में कुल मैंग्रोव क्षेत्र: 4,992 वर्ग किमी
घटाव: 2021 से 7.43 वर्ग किमी कम
सबसे ज्यादा कमी: गुजरात (-36), अंडमान (-4.65), पश्चिम बंगाल (-2)
बढ़ोतरी: आंध्र प्रदेश (+13), महाराष्ट्र (+12), ओडिशा (+8)
पिछले 25 वर्षों में सुंदरबन के 4 द्वीप पूरी तरह गायब हो चुके हैं।


2024-25 अपडेट: मूसुनी द्वीप का लगभग 15% हिस्सा 2030 तक गायब हो सकता है।


भारत के अन्य तटीय क्षेत्रों का खतरा

सुंदरबन के 102 द्वीपों में से 4 पहले ही डूब चुके हैं और कई अन्य गंभीर खतरे में हैं। घोरामारा, मूसुनी और सागर द्वीप तेजी से समुद्र में समा रहे हैं। देश के 113 तटीय शहर जैसे कोच्चि, विशाखापत्तनम, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई भी खतरे में हैं।