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सुनील दत्त का बंटवारे का दर्द: परिवार से बिछड़ने की कहानी

सुनील दत्त, भारतीय सिनेमा के एक महान अभिनेता, ने बंटवारे के समय अपने परिवार से बिछड़ने का दर्दनाक अनुभव साझा किया। उन्होंने बताया कि कैसे वह अपने परिवार को खोजते रहे और अंततः एक तांगे में अपने रिश्तेदार से मिले। इस कहानी में उनके परिवार से पुनर्मिलन के भावुक पल भी शामिल हैं। जानिए उनके जीवन की इस महत्वपूर्ण घटना के बारे में।
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सुनील दत्त का बंटवारे का दर्द: परिवार से बिछड़ने की कहानी

सुनील दत्त की अदाकारी और परिवार

अमिताभ बच्चन ने अपने बेटे को सलाह दी थी कि यदि उसे चलना सीखना है, तो उसे सुनील दत्त की तरह चलना चाहिए, क्योंकि वह एक पैंथर की तरह चलते थे। बिग बी ने यह बात सुनील दत्त के लिए कही थी। जब भी वह स्क्रीन पर आते थे, तो एक अलग ही माहौल बन जाता था। वह भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के महान कलाकारों में से एक थे। भले ही वह अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी अदाकारी और फिल्मों के प्रति योगदान हमेशा याद किया जाएगा। सुनील दत्त केवल एक अभिनेता नहीं थे, बल्कि राजनीति में भी सक्रिय रहे। उनकी अदायगी और व्यक्तित्व ने सभी को प्रभावित किया। इसके साथ ही, वह अपने परिवार के प्रति भी बहुत समर्पित थे। आज हम आपको उनके बंटवारे से जुड़ी एक दिलचस्प कहानी सुनाते हैं, जब वह अपने परिवार से बिछड़ गए थे।


बंटवारे के समय का अनुभव

सुनील दत्त का जन्म पाकिस्तान के खुर्द में हुआ था, और उनका असली नाम बलराज दत्त था। विभाजन के बाद, वह भारत आ गए। उन्होंने दूरदर्शन पर एक इंटरव्यू में बंटवारे के दर्द का जिक्र किया था। जब वह केवल 5 साल के थे, तब उन्होंने इस कठिनाई का सामना किया। सोशल मीडिया पर उनके उस इंटरव्यू की एक क्लिप वायरल हो रही है, जिसमें वह बताते हैं कि परिवार से बिछड़ने के बाद उन्हें ऐसा लगा कि उनका भी वही हाल हुआ, जो अन्य लोगों का हुआ था।


परिवार से बिछड़ने का किस्सा

वायरल क्लिप में सुनील दत्त बंटवारे के समय के अपने अनुभव को साझा करते हैं। वह कहते हैं, 'बंटवारे के समय मैं अपने परिवार से बिछड़ गया था। मैंने उन्हें अलग-अलग कैंपों में खोजा। मैंने अपनी मां, छोटे भाई और बहन के बारे में यही सोचा कि उनका भी वही हाल हुआ होगा। जब मैं अंबाला में था, तो एक तांगा मेरे पास से गुजरा, जिसमें से एक आवाज आई, 'ओ बलराज।' मुझे आश्चर्य हुआ कि मुझे यहां बलराज के नाम से कौन जानता है।'


परिवार से पुनर्मिलन

सुनील दत्त आगे बताते हैं, 'उस तांगे में मेरा एक रिश्तेदार था, जिसने मुझे तांगे पर बैठा लिया। मैंने उससे पूछा कि क्या उसने मेरी मां, भाई-बहन को देखा है? उसने कुछ नहीं कहा। फिर मैंने उससे पूछा कि वह कैसे वहां आया। उसने बताया कि उसका अंकल अंबाला में एसपी बन गया है। हम उनकी कोठी में गए, और जब मैं तांगे से उतरा, तो मैंने देखा कि मेरी मां खड़ी हैं। वह मैले कपड़ों में थीं, और मेरे भाई और बहन भी वहां थे। उन्हें देखकर मुझे ऐसा लगा जैसे मुझे पूरी दुनिया मिल गई है। यह मेरे लिए खुशी का एक बड़ा दिन था।'