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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: आधार को नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जा सकता

भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि आधार को नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जा सकता। इस फैसले के तहत, चुनाव आयोग को आधार की जानकारी का स्वतंत्र रूप से सत्यापन करने की आवश्यकता होगी। जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता में हुई सुनवाई में, कपिल सिब्बल ने चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर सवाल उठाए, जिसमें 65 लाख मतदाताओं के नाम सूची से बाहर किए जाने का मुद्दा शामिल था। जानें इस निर्णय के पीछे की वजहें और इसके संभावित प्रभावों के बारे में।
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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: आधार को नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जा सकता

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को भारतीय चुनाव आयोग के उस विचार का समर्थन किया है जिसमें कहा गया है कि आधार को नागरिकता का निर्णायक प्रमाण नहीं माना जा सकता। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि आधार की जानकारी का स्वतंत्र रूप से सत्यापन होना चाहिए। जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण (SIR) को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। जस्टिस कांत ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश कपिल सिब्बल से कहा कि चुनाव आयोग का यह कहना उचित है कि आधार को नागरिकता के प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता और इसे सत्यापित किया जाना चाहिए।


सत्यापन प्रक्रिया का अधिकार

तो सब कुछ खत्म हो जाएगा

अदालत ने यह भी कहा कि सबसे पहले यह स्पष्ट करना होगा कि क्या चुनाव आयोग के पास सत्यापन प्रक्रिया को लागू करने का अधिकार है। जस्टिस कांत ने कहा कि यदि आयोग के पास यह अधिकार नहीं है, तो स्थिति गंभीर हो जाएगी। लेकिन यदि उनके पास यह अधिकार है, तो कोई समस्या नहीं होनी चाहिए।


मतदाता सूची में बदलाव

65 लाख मतदाताओं के नाम बाहर

इस पर कपिल सिब्बल ने तर्क किया कि चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया के कारण बड़ी संख्या में मतदाता बाहर हो जाएंगे, विशेषकर वे लोग जो आवश्यक फ़ॉर्म जमा नहीं कर पाएंगे। उन्होंने कहा कि 2003 की मतदाता सूची में शामिल मतदाताओं को भी नए फ़ॉर्म भरने होंगे, और ऐसा न करने पर उनके नाम हटा दिए जाएंगे, भले ही निवास में कोई बदलाव न हुआ हो। सिब्बल के अनुसार, चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार 7.24 करोड़ लोगों ने फ़ॉर्म जमा किए थे, फिर भी लगभग 65 लाख लोगों के नाम बिना किसी उचित जांच के सूची से हटा दिए गए।


सुप्रीम कोर्ट के सवाल

65 लाख का आंकड़ा कैसे निकाला गया- सुप्रीम कोर्ट

अदालत ने यह सवाल उठाया कि 65 लाख का आंकड़ा कैसे प्राप्त किया गया और क्या यह आंकड़ा सत्यापित तथ्यों पर आधारित था या केवल अनुमानों पर। पीठ ने कहा कि वे यह जानना चाहते हैं कि क्या यह चिंता वास्तविक है या केवल काल्पनिक। पीठ ने यह भी कहा कि जिन लोगों ने फ़ॉर्म जमा किए थे, वे पहले से ही ड्राफ्ट रोल में थे। सिब्बल ने तब दावा किया कि 2025 की सूची में 7.9 करोड़ मतदाता हैं, जिनमें से 4.9 करोड़ मतदाता 2003 की सूची में थे और 22 लाख मतदाता मृत दर्ज हैं।


प्रशांत भूषण की दलील

प्रशांत भूषण ने क्या दलील दी?

इस बीच, याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग ने मृत्यु या निवास परिवर्तन के कारण बाहर किए गए मतदाताओं की सूची का खुलासा न तो अदालती दस्तावेज़ों में और न ही अपनी वेबसाइट पर किया है। भूषण ने कहा कि आयोग ने बूथ-स्तरीय एजेंटों को कुछ जानकारी दी है, लेकिन इसे किसी और को देने के लिए बाध्य नहीं हैं।

पीठ ने कहा कि यदि कोई मतदाता आधार और राशन कार्ड के साथ फ़ॉर्म जमा करता है, तो चुनाव आयोग को उसकी जानकारी सत्यापित करनी होगी। पीठ ने यह भी स्पष्ट करने की मांग की कि क्या गुम हुए दस्तावेजों की सूचना पाने के हकदार लोगों को वास्तव में सूचित किया गया था।