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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: शिक्षक भर्ती के लिए TET अनिवार्य

सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षक भर्ती के लिए टीईटी (टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट) को अनिवार्य कर दिया है। यह निर्णय उन शिक्षकों पर लागू होगा जिनकी सेवा में पांच साल से अधिक समय बचा है। जिन शिक्षकों के पास पांच साल का अनुभव नहीं है, वे बिना टीईटी पास किए पढ़ा सकते हैं, लेकिन उन्हें पदोन्नति नहीं मिलेगी। इस फैसले का उद्देश्य शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना है। हालांकि, अल्पसंख्यक संस्थानों में टीईटी की अनिवार्यता पर सवाल उठाए गए हैं, जिसका निर्णय अब बड़ी बेंच करेगी। जानें इस महत्वपूर्ण फैसले का विस्तृत विवरण।
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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: शिक्षक भर्ती के लिए TET अनिवार्य

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षक भर्ती से संबंधित एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है। जिन शिक्षकों की सेवा में पांच साल से अधिक समय बचा है, उन्हें टीईटी (टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट) पास करना अनिवार्य होगा। हालांकि, जिन शिक्षकों के पास पांच साल का अनुभव नहीं है, वे बिना टीईटी पास किए भी पढ़ा सकते हैं, लेकिन उन्हें पदोन्नति नहीं मिलेगी। यदि कोई शिक्षक टीईटी पास नहीं करता है और उसकी नौकरी में अभी काफी समय बचा है, तो उसे या तो नौकरी छोड़नी होगी या रिटायरमेंट लेकर सेवा लाभ (टर्मिनल बेनिफिट्स) लेना होगा। कोर्ट का मानना है कि इस कदम से शिक्षा की गुणवत्ता और जिम्मेदारी में वृद्धि होगी। यह आदेश तमिलनाडु और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों से आई याचिकाओं पर दिया गया है।


टीईटी की आवश्यकता

टीईटी क्यों आवश्यक है?

2010 में नेशनल काउंसिल फॉर टीचर एजुकेशन (NCTE) ने यह नियम बनाया था कि कक्षा 1 से 8 तक पढ़ाने के लिए टीईटी पास करना अनिवार्य है। इसके बाद टीईटी एक ऐसा परीक्षा बन गया, जिसे पास करने के बाद शिक्षक की पढ़ाने की योग्यता का पता चलता है। इसका उद्देश्य कक्षा 1 से 8 तक पढ़ाने वाले शिक्षकों की गुणवत्ता और क्षमता सुनिश्चित करना है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "20 साल से बिना टीईटी पढ़ा रहे शिक्षक भी शिकायतों के बिना पढ़ाते रहे हैं, लेकिन अब शिक्षा में समानता और गुणवत्ता के लिए एक मानक आवश्यक है।"


मुख्य मुद्दे

दो प्रमुख मुद्दे उठाए गए हैं:

क्या लंबे समय से पढ़ा रहे शिक्षकों के लिए टीईटी पास करना अनिवार्य है? क्या राज्य अल्पसंख्यक संस्थानों में नौकरी करने वाले शिक्षकों से टीईटी पास करने की शर्त रख सकता है?


अल्पसंख्यक स्कूलों में टीईटी

क्या अल्पसंख्यक स्कूलों में भी टीईटी अनिवार्य होगा?

सवाल यह है कि क्या अल्पसंख्यक स्कूलों (जैसे मुस्लिम, ईसाई, सिख आदि संस्थान) में भी टीईटी नियम लागू होगा या नहीं? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह तय करने का कार्य अब उसकी बड़ी बेंच करेगी। इसका मतलब है कि बड़ी बेंच यह देखेगी कि यदि अल्पसंख्यक संस्थानों में टीईटी लागू किया गया तो क्या यह उनके संवैधानिक अधिकारों को प्रभावित करेगा।


सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

टीईटी (टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट) को अनिवार्य कर दिया गया है, ताकि स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति एक समान गुणवत्ता मानक पर हो सके। यह निर्णय सरकारी और निजी दोनों स्कूलों पर प्रभाव डालेगा। हालांकि, अल्पसंख्यक संस्थानों से जुड़े अधिकार और आरटीई (राइट टू एजुकेशन) के बीच टकराव के कारण मामला बड़ी बेंच के पास भेजा गया है।


इस फैसले का प्रभाव

1. सरकारी स्कूल: अब नई नियुक्तियां केवल उन्हीं शिक्षकों की होंगी जिन्होंने टीईटी पास किया है। जो पुराने शिक्षक बिना टीईटी पढ़ा रहे थे, उन्हें अब परीक्षा देनी होगी (यदि उनकी सेवा में 5 साल से अधिक समय बचा है).

2. निजी (नॉन-माइनॉरिटी) स्कूल: यहां भी टीईटी पास करना अनिवार्य होगा। स्कूल प्रबंधन अब मनमाने तरीके से कम योग्यता वाले शिक्षकों को नहीं रख पाएंगे.

3. अल्पसंख्यक (Minority) स्कूल: यही सबसे बड़ा विवाद है। संविधान का आर्टिकल 30 कहता है कि अल्पसंख्यक संस्थानों को अपने हिसाब से शिक्षक रखने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने यह सवाल बड़ी बेंच को भेज दिया है कि क्या माइनॉरिटी स्कूलों में भी टीईटी अनिवार्य होगा या नहीं.