सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी: पुलिस हिरासत में मौतें एक बड़ा दाग
सुप्रीम कोर्ट की गंभीर चेतावनी
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक कड़ी टिप्पणी में कहा कि पुलिस हिरासत में होने वाली हिंसा और मौतें हमारे सिस्टम पर एक 'गंभीर दाग' हैं। अदालत ने स्पष्ट किया कि देश अब इसे किसी भी स्थिति में सहन नहीं करेगा।
मामले का विवरण
सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए सुनवाई की, जो देशभर में पुलिस थानों में सीसीटीवी की खराब स्थिति से संबंधित है। अदालत ने राजस्थान में पिछले आठ महीनों में हुई 11 हिरासत मौतों पर गहरी चिंता व्यक्त की। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की बेंच ने कहा, 'देश अब ऐसी घटनाओं को बर्दाश्त नहीं करेगा। यह सिस्टम पर एक धब्बा है। हिरासत में मौतें अस्वीकार्य हैं।'
केंद्र सरकार की अनुपालन रिपोर्ट
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हिरासत में मौत को कोई भी सही नहीं ठहरा सकता। हालांकि, कोर्ट ने इस बात पर नाराजगी जताई कि केंद्र सरकार ने अब तक अनुपालन रिपोर्ट पेश नहीं की है। अदालत ने तीखा सवाल किया, 'केंद्र सरकार इस अदालत को हल्के में क्यों ले रही है?' इसके बाद केंद्र ने तीन हफ्ते के भीतर हलफनामा देने का आश्वासन दिया।
सीसीटीवी लगाने के आदेश और प्रगति
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 और 2020 में आदेश दिया था कि सभी पुलिस थानों, सीबीआई, ईडी, एनआईए जैसे केंद्रीय एजेंसियों के कार्यालयों में पूर्ण कवरेज वाले सीसीटीवी कैमरे और रिकॉर्डिंग सिस्टम लगाए जाएं। लेकिन अदालत को बताया गया कि केवल 11 राज्यों ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की है। कई राज्यों और केंद्रीय विभागों ने अब तक कोई जानकारी नहीं दी है।
मध्य प्रदेश की सराहना
सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश की प्रशंसा की है, जहां हर पुलिस स्टेशन और चौकी को डिस्ट्रिक्ट कंट्रोल रूम से लाइव जोड़ा गया है। इसे बेंच ने सराहनीय कार्य बताया।
अमेरिका का मॉडल और ओपन एयर जेल
सुनवाई के दौरान अमेरिका के मॉडल का उल्लेख किया गया, जहां सीसीटीवी की लाइव स्ट्रीमिंग होती है। सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि कुछ समय पहले एक सुझाव आया था कि सीएसआर फंड से प्राइवेट जेलें बनाई जाएं। इस पर कोर्ट ने कहा कि वह पहले से ही ओपन एयर प्रिजन मॉडल पर एक केस देख रहा है, जो जेलों में भीड़भाड़ और हिंसा जैसी समस्याओं को कम कर सकता है।
कोर्ट की सख्त चेतावनी
कोर्ट ने आदेश दिया कि जो राज्य और केंद्र शासित प्रदेश अब तक रिपोर्ट नहीं दे पाए हैं, उन्हें तीन हफ्तों में अपनी जानकारी प्रस्तुत करनी होगी। यदि रिपोर्ट नहीं दी गई, तो उन राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के गृह विभाग के प्रमुख सचिव को कोर्ट में पेश होना पड़ेगा। केंद्र से कहा गया कि यदि केंद्रीय एजेंसियों ने अनुपालन नहीं किया, तो उनके निदेशक को बुलाया जाएगा। कोर्ट ने इस मामले को 16 दिसंबर के लिए सूचीबद्ध किया है। तब तक सभी राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और केंद्र को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।
