सुप्रीम कोर्ट ने अंडरट्रायल कैदियों के वोटिंग अधिकार पर उठाया कदम

सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय
नई दिल्ली। हर नागरिक का वोट डालने का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, लेकिन जेल में बंद कैदियों को यह अधिकार नहीं मिलता। इसी संदर्भ में, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। यह मामला लगभग 4.5 लाख अंडरट्रायल कैदियों के वोटिंग अधिकार से संबंधित है, जो जेल में हैं लेकिन अभी तक दोषी नहीं ठहराए गए हैं।
मामले की पृष्ठभूमि
यह जनहित याचिका पंजाब के पटियाला की निवासी सुनीता शर्मा द्वारा दायर की गई है। याचिका में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 62(5) को चुनौती दी गई है, जिसके अनुसार जेल में बंद व्यक्ति, चाहे वह सजा काट रहा हो या ट्रायल का इंतजार कर रहा हो, चुनाव में वोट नहीं दे सकता। याचिका में यह भी कहा गया है कि यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 326 (वयस्क मताधिकार) का उल्लंघन करता है।
अंडरट्रायल कैदियों की स्थिति
याचिकाकर्ता का तर्क है कि अंडरट्रायल कैदी तब तक निर्दोष माने जाते हैं जब तक उनकी दोषिता साबित नहीं हो जाती। ऐसे में, उन्हें वोटिंग से वंचित करना अनुचित है, विशेषकर उन कैदियों के लिए जो चुनावी अपराध या भ्रष्टाचार के मामलों में दोषी नहीं हैं। याचिका में सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया गया है कि जेलों में वोटिंग स्टेशन स्थापित करने और बंदियों के लिए डाक मतपत्र की व्यवस्था की जाए।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र के विधि एवं न्याय मंत्रालय और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया। बेंच ने दोनों पक्षों से शीघ्र जवाब मांगा है। वकील प्रशांत भूषण ने याचिका का समर्थन करते हुए कहा कि वोटिंग पर पूर्ण प्रतिबंध संविधान के अधिकारों का उल्लंघन है। कोर्ट ने मामले को गंभीरता से लेते हुए आगे की सुनवाई की तारीख निर्धारित की है।
भारत में अंडरट्रायल कैदियों की संख्या
भारत की जेलों में लगभग 4.5 लाख अंडरट्रायल कैदी हैं, जो कुल कैदियों का एक बड़ा हिस्सा बनाते हैं। यदि कोर्ट का निर्णय उनके पक्ष में आता है, तो यह लोकतंत्र को मजबूत करने वाला कदम साबित होगा।