सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पर्वत श्रृंखला पर महत्वपूर्ण आदेश जारी किया
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
नई दिल्ली - सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पर्वत श्रृंखला से संबंधित एक महत्वपूर्ण आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को अरावली का हिस्सा नहीं मानने का निर्देश था। सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए स्पष्ट किया कि अरावली की परिभाषा और इसके पर्यावरणीय प्रभावों पर और जानकारी की आवश्यकता है।
सुनवाई के दौरान की गई चर्चा
सुनवाई के दौरान, केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि इस मामले में गलत जानकारी फैलाई जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अरावली पर्वत श्रृंखला से जुड़े कई तकनीकी और वैज्ञानिक पहलुओं को समझना आवश्यक है, इसलिए इस विषय को संज्ञान में लिया गया है।
विशेषज्ञ समिति का गठन
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में समिति का गठन
मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई में एक उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया है, जो अरावली हिल्स और पूरी पर्वत श्रृंखला की गहन जांच करेगी। इस समिति में डोमेन विशेषज्ञ शामिल होंगे, जो अरावली की संरचनात्मक और पारिस्थितिक अखंडता की जांच करेंगे।
अगली सुनवाई की तारीख
सीजेआई ने कहा कि कुछ तकनीकी बिंदुओं को स्पष्ट करना आवश्यक है। उन्होंने कहा, “अरावली हिल्स और रेंज की लंबे समय तक एक हाई-पावर्ड कमिटी द्वारा जांच की जाएगी, ताकि इस प्राचीन पर्वत श्रृंखला की संरचना और पर्यावरणीय संतुलन को सुरक्षित रखा जा सके।” कोर्ट ने निर्देश दिया है कि समिति की सिफारिशें आने तक पहले के आदेश प्रभावी नहीं होंगे। अगली सुनवाई 21 जनवरी को होगी।
नवंबर के फैसले पर रोक
नई जांच समिति के निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर को दिए गए अपने फैसले पर भी रोक लगा दी है, जिसमें केंद्र के पर्यावरण मंत्रालय द्वारा दी गई अरावली हिल्स और रेंज की परिभाषा को स्वीकार किया गया था। इस परिभाषा के लागू होने से अरावली क्षेत्र में खनन जैसी गतिविधियों के लिए रास्ता खुलने की आशंका थी।
केंद्र और राज्यों को नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के साथ-साथ अरावली से जुड़े चार राज्यों राजस्थान, गुजरात, दिल्ली और हरियाणा को भी नोटिस जारी कर इस मुद्दे पर जवाब मांगा है। अरावली पर्वत श्रृंखला का एक सिरा गुजरात में और दूसरा दिल्ली में है, जबकि इसका सबसे बड़ा हिस्सा राजस्थान में फैला हुआ है। हरियाणा में भी इस पर्वत श्रृंखला का विस्तार है।
पर्यावरणीय चिंताएं
हालांकि अरावली पर्वत हिमालय की तरह ऊंचे नहीं हैं, लेकिन यह क्षेत्र जैव विविधता के लिए समृद्ध है। यहां कई दुर्लभ वन्य जीव और पेड़-पौधे पाए जाते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यहां बड़े पैमाने पर खनन गतिविधियां शुरू होती हैं, तो इससे पर्यावरण और वन्य जीवन पर गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है।
