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सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड में वन भूमि पर निजी कब्जों की गंभीरता को पहचाना

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने उत्तराखंड में 2866 एकड़ वन भूमि पर निजी कब्जों के मामले को गंभीरता से लिया है। उन्होंने इसे पर्यावरण के लिए खतरा बताते हुए राज्य सरकार को फटकार लगाई और जांच समिति गठित करने का आदेश दिया। यह मामला 1950 से शुरू होता है, जब भूमि का लीज पर आवंटन किया गया था। कोर्ट ने स्थिति बनाए रखने के आदेश दिए हैं और अगली सुनवाई 5 जनवरी 2026 को निर्धारित की है।
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सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड में वन भूमि पर निजी कब्जों की गंभीरता को पहचाना

मुख्य न्यायाधीश की सख्त टिप्पणी

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने उत्तराखंड में 2866 एकड़ वन भूमि पर निजी कब्जों के मामले को गंभीरता से लिया है। उन्होंने इसे पर्यावरण के लिए एक बड़ा खतरा बताते हुए कहा कि यह एक संगठित हड़प है, जो राज्य की नाजुक हिमालयी पारिस्थितिकी को नुकसान पहुँचा सकता है। मुख्य न्यायाधीश ने राज्य सरकार को 'मूक दर्शक' करार देते हुए जांच समिति गठित करने का आदेश दिया।


भूमि का इतिहास और वर्तमान स्थिति

यह मामला 1950 से शुरू होता है, जब ऋषिकेश की पशुलोक सेवा समिति को भूमिहीनों के लिए भूमि लीज पर दी गई थी। 1984 में समिति ने 594 एकड़ भूमि वापस की, लेकिन शेष भूमि पर निजी कब्जे बने रहे। कोर्ट ने कहा कि हजारों एकड़ वन भूमि का हड़पना जारी है, जबकि अधिकारी चुप्पी साधे हुए हैं। अब मुख्य सचिव और प्रधान वन संरक्षक को जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी। वन विभाग खाली भूमि पर कब्जा करेगा और कोई नया निर्माण नहीं होगा।


सुप्रीम कोर्ट के आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने विवादित भूमि पर स्थिति को बनाए रखने का आदेश दिया है। कोई बिक्री, हस्तांतरण या थर्ड पार्टी अधिकार स्थापित नहीं किए जा सकेंगे। आवासीय मकानों को छोड़कर, वन विभाग और कलेक्टर खाली भूमि पर कब्जा करेंगे। नए निर्माण पर रोक रहेगी।


मामले की गंभीरता

उत्तराखंड में वन कवर पहले से ही घट रहा है। ऐसे अतिक्रमण से जंगल सिकुड़ रहे हैं, जो जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं को बढ़ावा देते हैं। कोर्ट की सख्ती से बड़े पैमाने पर कार्रवाई की संभावना है। मुख्य न्यायाधीश ने अगली सुनवाई 5 जनवरी 2026 को निर्धारित की है। यह मामला उत्तराखंड की नाजुक हिमालयी पारिस्थितिकी से भी संबंधित है, जहां वन अतिक्रमण से भूस्खलन, बाढ़ और जैव विविधता को गंभीर नुकसान हो रहा है।