सुप्रीम कोर्ट ने कुलदीप सेंगर को जमानत देने के हाई कोर्ट के फैसले पर लगाई रोक
सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय
नई दिल्ली। उन्नाव बलात्कार मामले के दोषी और भाजपा के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को जमानत देने के हाई कोर्ट के निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। चीफ जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता में एक अवकाशकालीन बेंच ने सोमवार को इस मामले की सुनवाई की और हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने का आदेश दिया। सीबीआई ने इस फैसले को चुनौती दी थी। उल्लेखनीय है कि हाई कोर्ट ने सेंगर की सजा को निलंबित करते हुए उसे जमानत दी थी, जिसके बाद देशभर में इस निर्णय का विरोध हुआ। रेप पीड़िता और सामाजिक कार्यकर्ता योगिता भयाना, मुमताज पटेल आदि ने दिल्ली में प्रदर्शन किया, जिसके बाद सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और महत्वपूर्ण सवाल
सुप्रीम कोर्ट की अवकाशकालीन बेंच ने हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए सेंगर को नोटिस जारी किया है। अब इस मामले की सुनवाई चार हफ्ते बाद होगी। ध्यान देने योग्य है कि सेंगर को दिल्ली हाई कोर्ट ने 23 दिसंबर को जमानत दी थी। सोमवार को चीफ जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने सीबीआई की याचिका पर लगभग 40 मिनट तक सुनवाई की। चीफ जस्टिस ने कहा, 'हाई कोर्ट के जिन जजों ने सजा सस्पेंड की, वे बेहतरीन जजों में गिने जाते हैं, लेकिन गलती किसी से भी हो सकती है।' अदालत ने एक महत्वपूर्ण सवाल उठाते हुए कहा कि कैसे पुलिस का कॉन्स्टेबल लोक सेवक माना जा सकता है, लेकिन विधायक या सांसद को नहीं।
कानूनी सवालों पर विचार
चीफ जस्टिस ने कहा, 'कोर्ट को लगता है कि मामले में महत्वपूर्ण सवालों पर विस्तार से विचार करना आवश्यक है। आमतौर पर कोर्ट का सिद्धांत है कि किसी दोषी या विचाराधीन कैदी को रिहा करने के आदेश पर रोक नहीं लगाई जाती, लेकिन इस मामले में परिस्थितियां भिन्न हैं क्योंकि आरोपी पहले से ही एक अन्य मामले में दोषी ठहराया जा चुका है। इसलिए, दिल्ली हाईकोर्ट के 23 दिसंबर 2025 के आदेश पर रोक लगाई जाती है।' इससे पहले, सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने इसे गंभीर मामला बताया। चीफ जस्टिस ने कहा, 'इस मामले में एक गंभीर कानूनी सवाल है, जिस पर विचार करना आवश्यक है।'
असमानता का मुद्दा
उन्होंने कहा, 'हाई कोर्ट का आदेश जिन जजों ने दिया है, वे देश के बेहतरीन जजों में गिने जाते हैं, लेकिन गलती किसी से भी हो सकती है। यह असमानता अदालत को परेशान कर रही है कि कैसे पॉक्सो कानून के तहत एक पुलिस कॉन्स्टेबल को लोक सेवक माना जाए, लेकिन निर्वाचित जनप्रतिनिधि जैसे विधायक या सांसद को इस दायरे से बाहर रखा जाए।'
