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सुप्रीम कोर्ट ने दिव्यांग कैडेट्स के समर्थन पर उठाए सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने सैन्य प्रशिक्षण के दौरान घायल हुए कैडेट्स को मिलने वाली सहायता की कमी पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। न्यायालय ने सरकार से इन कैडेट्स के लिए उचित पुनर्वास और समर्थन की व्यवस्था करने का निर्देश दिया है। यह मामला न केवल कैडेट्स की दुर्दशा को उजागर करता है, बल्कि सैन्य संस्थानों में सुरक्षा उपायों की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालता है। जानें इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का क्या रुख है और आगे का रास्ता क्या है।
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सुप्रीम कोर्ट ने दिव्यांग कैडेट्स के समर्थन पर उठाए सवाल

सुप्रीम कोर्ट की चिंता

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सैन्य प्रशिक्षण के दौरान घायल हुए कैडेट्स को मिलने वाले समर्थन की कमी पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। यह मामला उन युवा कैडेट्स से संबंधित है, जिन्होंने देश की सेवा के अपने सपनों को साकार करने के प्रयास में प्रशिक्षण के दौरान चोटें खाई हैं।


न्यायालय ने इस मुद्दे पर सख्त रुख अपनाते हुए पूछा है कि इन कैडेट्स को पर्याप्त पुनर्वास और सहायता क्यों नहीं मिल रही है। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि घायल कैडेट्स को सेना से बाहर करने के बजाय, उन्हें उनकी योग्यताओं के अनुसार सेना में उपयुक्त भूमिकाएं दी जानी चाहिए। न्यायालय ने मानवीय दृष्टिकोण से सरकार को निर्देश दिया है कि वह इन कैडेट्स के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए आवश्यक कदम उठाए।


रिपोर्टों के अनुसार, कई कैडेट्स को प्रशिक्षण के दौरान दुर्घटनाओं के कारण शारीरिक रूप से अक्षम होना पड़ा है। ऐसे मामलों में, उन्हें सेना से सेवानिवृत्त कर दिया जाता है, लेकिन उन्हें मिलने वाली आर्थिक सहायता और पुनर्वास की व्यवस्थाएं अक्सर अपर्याप्त होती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से इन नीतियों की समीक्षा करने और दिव्यांग कैडेट्स के लिए एक समान और प्रभावी सहायता प्रणाली विकसित करने की अपेक्षा की है।


यह मामला देश के सैन्य प्रशिक्षण संस्थानों में सुरक्षा उपायों और दिव्यांग कैडेट्स के प्रति संवेदनशीलता को भी उजागर करता है। सुप्रीम कोर्ट का यह कदम यह सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण है कि जो युवा अपने सब कुछ देश के लिए न्योछावर करने को तैयार हैं, उन्हें उचित सम्मान और सहायता मिले, भले ही वे किसी कारणवश सेवा जारी न रख सकें।