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सुप्रीम कोर्ट ने न्यायपालिका की पारदर्शिता पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की

सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के मामले में सुनवाई के दौरान न्यायपालिका की आंतरिक पारदर्शिता और जवाबदेही पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की। कोर्ट ने इन-हाउस प्रक्रिया की वैधता का समर्थन करते हुए मुख्य न्यायाधीश की भूमिका को स्पष्ट किया। सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने देरी से याचिका दायर करने पर सवाल उठाए और न्यायपालिका की गरिमा बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया। यह मामला न्यायपालिका के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।
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सुप्रीम कोर्ट ने न्यायपालिका की पारदर्शिता पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की

सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा का मामला

न्यायपालिका की आंतरिक पारदर्शिता और जवाबदेही पर चल रही बहस के बीच, सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के मामले में महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। बुधवार को हुई सुनवाई में, कोर्ट ने वर्मा की याचिका पर निर्णय सुरक्षित रखते हुए इन-हाउस प्रक्रिया की वैधता और मुख्य न्यायाधीश की भूमिका का समर्थन किया। वर्मा ने अपनी याचिका में आंतरिक समिति की जांच रिपोर्ट और सीजेआई द्वारा राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को की गई सिफारिशों की संवैधानिकता पर सवाल उठाए थे.


सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इन-हाउस जांच प्रक्रिया दशकों से लागू है और यह "देश का कानून" है। कोर्ट ने कहा कि इस प्रक्रिया को पहले भी न्यायिक फैसलों में मान्यता दी जा चुकी है, इसलिए इसे चुनौती देने से पहले समीक्षा याचिका लानी चाहिए थी। मुख्य न्यायाधीश की भूमिका पर उठाए गए सवालों का जवाब देते हुए कोर्ट ने कहा, "CJI कोई डाकखाना नहीं हैं, बल्कि वे न्यायपालिका के मुखिया हैं और नागरिकों के प्रति जवाबदेह हैं। यदि उनके पास किसी न्यायाधीश के खिलाफ दुर्व्यवहार का ठोस आधार है, तो वे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को सूचित कर सकते हैं."


सुप्रीम कोर्ट ने देरी और रणनीति पर उठाए सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने उठाए सवाल


जस्टिस वर्मा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की दलीलों को कोर्ट ने गंभीरता से सुना, लेकिन देरी से याचिका दायर करने और प्रक्रिया पर अब सवाल उठाने को लेकर अदालत ने सवाल भी खड़े किए। कोर्ट ने कहा, "अगर यह प्रक्रिया असंवैधानिक थी, तो आप पहले क्यों नहीं आए?" इसके अलावा, कोर्ट ने उस समय को लेकर भी सवाल उठाए जब जांच से जुड़े टेप सार्वजनिक किए गए थे। हालांकि, कोर्ट ने माना कि टेप रिलीज की टाइमिंग पर आपत्ति जायज़ हो सकती है.


न्यायिक संस्थानों की गरिमा को बनाए रखने की बात

न्यायपालिका की संस्थागत अखंडता


कोर्ट ने कहा कि न्यायपालिका को एक स्पष्ट संदेश देना चाहिए कि जो भी प्रक्रिया अपनाई गई, वह विधिवत और नियमानुसार थी। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि जज को हटाने और हटाने की प्रक्रिया में अंतर होता है। मुख्य न्यायाधीश, इन-हाउस प्रक्रिया से बंधे होते हुए, उसी प्रक्रिया का पालन कर रहे हैं। साथ ही, कोर्ट ने यह भी कहा कि संविधानिक चुनौती पर फैसला वही करेगा, लेकिन यह ज़रूरी है कि न्यायपालिका की संस्थागत अखंडता बनी रहे.