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सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 के प्रावधानों को किया रद्द

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार को एक बड़ा झटका देते हुए न्यायाधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 के कई प्रावधानों को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि संसद इन प्रावधानों को मामूली संशोधनों के साथ फिर से लागू नहीं कर सकती। प्रधान न्यायाधीश ने इस निर्णय में न्यायाधिकरणों की स्वतंत्रता और कार्यप्रणाली को लेकर स्पष्ट सिद्धांतों का उल्लंघन करने के लिए विधायिका की आलोचना की। जानें इस महत्वपूर्ण निर्णय के पीछे की पूरी कहानी और इसके संभावित प्रभाव।
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सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 के प्रावधानों को किया रद्द

सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार को एक महत्वपूर्ण झटका देते हुए न्यायाधिकरणों के सदस्यों और पीठासीन अधिकारियों की नियुक्ति, कार्यकाल और सेवा शर्तों से संबंधित न्यायाधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 के कई प्रमुख प्रावधानों को रद्द कर दिया। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि “संसद मामूली संशोधनों के साथ इन्हें फिर से लागू करके न्यायिक निर्णय को नजरअंदाज नहीं कर सकती।”


शीर्ष अदालत ने केंद्र पर तीखी टिप्पणी की, जिसमें कहा गया कि उसने इन प्रावधानों को अध्यादेश के रूप में लाने और बाद में लगभग समान रूप में कानून में पेश किया। प्रधान न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने 137 पृष्ठ के अपने निर्णय में कहा, “न्यायाधिकरणों से संबंधित मुद्दों पर इस अदालत द्वारा पहले ही कई निर्णय दिए जा चुके हैं, जिन्हें बार-बार अस्वीकार करने के भारत सरकार के रवैये से हम असहमत हैं।”


पीठ ने यह भी कहा, “यह वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है कि न्यायाधिकरणों की स्वतंत्रता और कार्यप्रणाली को लेकर इस न्यायालय द्वारा निर्धारित सिद्धांतों को लागू करने के बजाय, विधायिका ने ऐसे प्रावधान फिर से पेश किए हैं, जिनसे अलग-अलग कानूनों और नियमों के माध्यम से वही संवैधानिक विवाद दोबारा उत्पन्न हो गए हैं।”


पीठ ने यह स्पष्ट किया कि विवादित प्रावधान शक्तियों के पृथक्करण और न्यायिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं और इन्हें पुनः लागू नहीं किया जाना चाहिए।


उन्होंने यह भी कहा कि लंबित मामलों का समाधान केवल न्यायपालिका की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि अन्य सरकारी अंगों को भी इस जिम्मेदारी को निभाना होगा। पीठ ने यह भी कहा कि संसद ने पहले से रद्द किए गए प्रावधानों को पुनः लागू करके बाध्यकारी न्यायिक मिसालों की “विधायी अवहेलना” करने का प्रयास किया है।


प्रधान न्यायाधीश ने अपने निर्णय में कहा, “हमने अध्यादेश और 2021 के अधिनियम के प्रावधानों की तुलना की है और यह स्पष्ट है कि पहले ही खारिज किए गए सभी प्रावधानों को मामूली बदलावों के साथ फिर से लागू किया गया है।”


उन्होंने कहा, “इस प्रकार हमारा मत है कि 2021 अधिनियम के प्रावधानों को बनाए नहीं रखा जा सकता, क्योंकि वे शक्तियों के पृथक्करण और न्यायिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करते हैं। इनमें किसी वास्तविक खामी को दूर नहीं किया गया है और यह विधायी अतिक्रमण के समान है। यह संविधान के अनुरूप नहीं है, इसलिए इसे असंवैधानिक घोषित कर रद्द किया जाता है।”