सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के मतदाता पुनरीक्षण पर चुनाव आयोग से पूछे गंभीर सवाल

बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की चिंता
सर्वोच्च न्यायालय ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) को लेकर भारत के चुनाव आयोग से कई महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे हैं। न्यायालय ने इस प्रक्रिया में आधार कार्ड जैसे महत्वपूर्ण दस्तावेज़ को सत्यापन के लिए अस्वीकार करने और विधानसभा चुनावों के निकटता पर चिंता व्यक्त की है।
चुनावों से मतदाता पुनरीक्षण का संबंध क्यों?
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने एसआईआर को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के दौरान यह सवाल उठाया कि इस प्रक्रिया को आगामी चुनावों से क्यों जोड़ा जा रहा है। न्यायालय ने कहा कि यदि नागरिकता सत्यापन ही मुख्य उद्देश्य है, तो चुनाव आयोग को इसे पहले ही करना चाहिए था। अदालत ने यह भी बताया कि यह प्रक्रिया अब बहुत देर से शुरू की जा रही है, जिससे इसके उद्देश्य और निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं।
आधार कार्ड को दस्तावेज़ मानने से इनकार का कारण
न्यायालय ने यह भी पूछा कि सत्यापन प्रक्रिया में आधार कार्ड को क्यों नहीं स्वीकार किया जा रहा है। पीठ ने कहा कि जब आधार एक व्यापक पहचान दस्तावेज़ है, तो इसे मतदाता सत्यापन में शामिल क्यों नहीं किया गया? इससे मतदाताओं के अधिकारों के हनन की आशंका बढ़ जाती है।
चुनाव आयोग का स्पष्टीकरण
चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने अदालत को बताया कि यह प्रक्रिया भारतीय संविधान के अनुच्छेद 326 के अनुसार अनिवार्य है, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि केवल भारतीय नागरिक ही मतदाता सूची में शामिल हो सकते हैं। आयोग का कहना है कि 2003 के बाद पहली बार यह विशेष पुनरीक्षण किया जा रहा है और इसका उद्देश्य मतदाता सूची की शुद्धता और वैधता सुनिश्चित करना है।
राजनीतिक दलों की आपत्ति
इस प्रक्रिया के खिलाफ याचिकाएं दायर करने वालों में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), कार्यकर्ता योगेंद्र यादव और 10 से अधिक राजनीतिक दल शामिल हैं, जिनमें राजद, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, राकांपा (शरद पवार), शिवसेना (UBT) और भाकपा शामिल हैं। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि चुनावों के इतने करीब 7.9 करोड़ नागरिकों की दोबारा पात्रता जांच करवाना न केवल असंवैधानिक है, बल्कि यह एक राजनीतिक चाल भी हो सकती है।
विवाद का कारण
हालांकि चुनाव आयोग इस कदम को आवश्यक और नियमित प्रक्रिया बता रहा है, लेकिन आलोचकों का कहना है कि इससे बड़ी संख्या में नागरिक अपने मताधिकार से वंचित हो सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल प्रक्रिया की वैधता पर कोई अंतिम निर्णय नहीं दिया है, लेकिन उसने चुनाव आयोग से कुछ गंभीर सवालों के जवाब मांगे हैं।