Newzfatafatlogo

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार चुनाव से पहले वोटर लिस्ट समीक्षा पर उठाए सवाल

बिहार चुनाव से पहले वोटर लिस्ट की समीक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। याचिकाकर्ताओं ने निर्वाचन आयोग के आदेश को चुनौती दी है। वकील गोपाल शंकर नारायण ने इसे भेदभावपूर्ण बताया, जबकि जस्टिस धुलिया ने आयोग के संविधानिक अधिकारों का समर्थन किया। जानें इस मामले में और क्या हुआ और याचिकाकर्ताओं ने क्या दलीलें दीं।
 | 
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार चुनाव से पहले वोटर लिस्ट समीक्षा पर उठाए सवाल

सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट पर वोटर लिस्ट समीक्षा: बिहार चुनाव से पहले वोटर लिस्ट की समीक्षा को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है। इस मामले में आरजेडी सांसद मनोज झा, एडीआर और महुआ मोइत्रा सहित 10 व्यक्तियों ने याचिकाएं दायर की हैं। याचिका में निर्वाचन आयोग के आदेश को रद्द करने की मांग की गई है। आयोग की ओर से पूर्व अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने पेशी दी है, जबकि याचिकाकर्ताओं की तरफ से कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और गोपाल शंकर नारायण दलीलें दे रहे हैं।


याचिकाकर्ता के वकील गोपाल शंकर नारायण ने अदालत में कहा कि एसआईआर पहली बार हो रहा है, जो किसी नियम या कानून में नहीं है। यह देश के इतिहास में पहली बार हो रहा है। इस पर जस्टिस धुलिया ने कहा कि चुनाव आयोग वही कर रहा है जो संविधान में निर्धारित है। इसलिए आप यह नहीं कह सकते कि वे कुछ ऐसा कर रहे हैं जो उन्हें नहीं करना चाहिए। गोपाल शंकर नारायण ने कहा कि यह पूरी तरह से मनमाना और भेदभावपूर्ण है। वे यह दिखाएंगे कि सुरक्षा उपाय किस प्रकार दिए गए हैं। इस प्रक्रिया का कानून में कोई आधार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव से ठीक पहले यह प्रक्रिया नहीं होनी चाहिए थी।


याचिकाकर्ताओं के वकील की दलीलें:


1. गोपाल शंकर नारायण ने सवाल उठाया कि 2003 से पहले के लोगों को केवल फ़ॉर्म भरना है, जबकि बाद के लोगों को दस्तावेज़ लगाने हैं। यह भेद बिना किसी आधार के किया गया है, जो कानून की अनुमति नहीं देता। जस्टिस धूलिया ने कहा कि इसमें व्यावहारिकता भी जुड़ी हुई है। ECI ने यह तारीख़ इसलिए तय की क्योंकि यह कंप्यूटराइजेशन के बाद पहली बार हो रहा था।


2. गोपाल शंकर नारायण ने कहा कि आधार को पहचान के लिए वैध दस्तावेज़ माना जाता है, लेकिन इसे वोटर वेरिफिकेशन में नहीं लिया जा रहा है।


3. कपिल सिब्बल ने SIR प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में नहीं है। चुनाव आयोग कौन होता है यह कहने वाला कि हम नागरिक नहीं हैं!


4. बिहार सरकार के सर्वे से पता चलता है कि बहुत कम लोगों के पास वो कागजात हैं जो चुनाव आयोग मांग रहा है। पासपोर्ट केवल 2.5% लोगों के पास है, मैट्रिकुलेशन प्रमाणपत्र 14.71% के पास है। वन अधिकार प्रमाणपत्र बहुत कम लोगों के पास हैं, निवास प्रमाणपत्र और ओबीसी प्रमाणपत्र भी बहुत कम लोगों के पास हैं। जन्म प्रमाणपत्र और आधार को बाहर रखा गया है, मनरेगा कार्ड भी बाहर रखा गया है।


खबर अपडेट की जा रही है…