सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर लगाई रोक, जानें क्या है मामला

वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
Waqf Amendment Act 2025: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कुछ विवादित धाराओं पर अंतरिम रोक लगा दी. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब तक मामले की पूरी सुनवाई नहीं हो जाती, तब तक वक्फ बनाने और अतिक्रमण से जुड़ी प्रक्रियाओं वाली धाराओं को लागू नहीं किया जाएगा. कोर्ट ने यह भी कहा कि अधिनियम को पूरी तरह से स्थगित करने का कोई औचित्य फिलहाल नहीं बनता.
अदालत की मुख्य टिप्पणियां
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि याचिकाएं पूरे कानून को चुनौती देती हैं, लेकिन विशेष आपत्ति धारा 3(आर), 3सी और 14 पर है. अदालत ने कहा कि 1923 से अब तक के विधायी इतिहास को देखते हुए इन धाराओं पर प्रथम दृष्टा आपत्ति सही प्रतीत होती है, इसलिए इन पर अस्थायी रोक लगाई जाती है.
इस्लाम पालन की शर्त पर रोक
धारा 3(आर) के तहत वक्फ बनाने के लिए किसी व्यक्ति को कम से कम पांच साल तक इस्लाम का अनुयायी होना आवश्यक बताया गया था. अदालत ने इस शर्त को तब तक स्थगित कर दिया है जब तक यह तय करने के लिए स्पष्ट नियम नहीं बनते कि कोई व्यक्ति इस्लाम का पालन करता है या नहीं.
‘उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ’ पर टिप्पणी
अदालत ने कहा कि धारा 3सी(2) के तहत कोई भी संपत्ति तब तक वक्फ नहीं मानी जाएगी जब तक सरकारी अधिकारी यह रिपोर्ट न दे दें कि उस पर कोई अतिक्रमण नहीं है. वहीं, ‘उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ’ की अवधारणा को हटाने पर भी अदालत ने टिप्पणी की कि यदि यह संशोधन सरकारी संपत्तियों पर अतिक्रमण रोकने के उद्देश्य से है तो इसे प्रथम दृष्टा मनमाना नहीं कहा जा सकता.
कलेक्टर को अधिकार देने वाली धारा भी रोकी
धारा 3सी(4) में कलेक्टर को यह तय करने का अधिकार दिया गया था कि कोई संपत्ति सरकारी है या वक्फ की. अदालत ने इस प्रावधान को भी स्थगित कर दिया और कहा कि कार्यपालिका को नागरिकों के निजी अधिकार तय करने की अनुमति नहीं दी जा सकती क्योंकि यह शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के खिलाफ है.
वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की सीमा तय
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वक्फ बोर्ड में तीन से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होने चाहिए और राष्ट्रीय वक्फ परिषद में भी कुल चार से अधिक गैर-मुस्लिम न हों. साथ ही, पदेन अधिकारियों को यथासंभव मुस्लिम समुदाय से होने की सलाह दी गई.
पंजीकरण प्रावधान को दी मान्यता
अदालत ने पंजीकरण को अनिवार्य बनाने वाले प्रावधान को बरकरार रखा और कहा कि यह व्यवस्था 1995 से लागू है, इसलिए इसे नया नहीं माना जा सकता.
फैसले पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं
वकील एम.आर. शमशाद और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने फैसले का स्वागत किया और कहा कि कई बिंदुओं को अदालत ने स्वीकार किया है. कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने भी कहा कि यह निर्णय उन लोगों के लिए राहत है जो डरते थे कि सरकार उनकी जमीन हड़प लेगी.