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सुप्रीम कोर्ट ने सेना के पूर्व अधिकारी की बर्खास्तगी को दी मंजूरी

भारत की सर्वोच्च अदालत ने पूर्व लेफ्टिनेंट सैमुअल कमलेसन की बर्खास्तगी को सही ठहराते हुए कहा कि वह सेना में बने रहने के योग्य नहीं हैं। कमलेसन ने अपने सीनियर के आदेश का पालन करते हुए गुरुद्वारे में सेवा करने से मना कर दिया था, जिसके बाद उन्हें बर्खास्त किया गया। अदालत ने अनुशासन और आदेश के महत्व पर जोर दिया और याचिकाकर्ता की दलीलों को खारिज कर दिया। जानें इस मामले की पूरी जानकारी।
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सुप्रीम कोर्ट ने सेना के पूर्व अधिकारी की बर्खास्तगी को दी मंजूरी

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

नई दिल्ली - भारत की सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को पूर्व लेफ्टिनेंट सैमुअल कमलेसन की बर्खास्तगी के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। कमलेसन को अपने यूनिट के गुरुद्वारे में सेवा करने से मना करने के कारण नौकरी से निकाला गया था। अदालत ने कहा कि वह सेना में बने रहने के योग्य नहीं हैं।


अनुशासन का महत्व

मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता में पीठ ने कहा कि सैन्य बलों में अनुशासन और आदेश का पालन सर्वोपरि है। कोई भी अधिकारी व्यक्तिगत विश्वास का हवाला देकर आदेशों की अवहेलना नहीं कर सकता। उन्होंने कहा, 'वह किस तरह का संदेश दे रहा है? एक आर्मी ऑफिसर की अनुशासनहीनता। उसे नौकरी से निकालना सही था। क्या ऐसे झगड़ालू लोग सेना में रह सकते हैं?'


कमलेसन का मामला

सैमुअल कमलेसन तीसरी कैवलरी रेजिमेंट में लेफ्टिनेंट थे। उन्होंने अपने सीनियर के आदेश का पालन करते हुए गुरुद्वारे में सेवा करने से मना कर दिया था, यह कहते हुए कि उनका एकेश्वरवादी ईसाई धर्म इसकी अनुमति नहीं देता। इसके परिणामस्वरूप उन्हें मिलिट्री डिसिप्लिन तोड़ने के लिए बर्खास्त कर दिया गया। मई में, उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की, लेकिन अदालत ने सेना के निर्णय को सही ठहराया। अब मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा था, जिसने कहा कि 'वह एक उत्कृष्ट अधिकारी हो सकता है, लेकिन भारतीय सेना के लिए वह अनुपयुक्त है।'


याचिकाकर्ता की दलीलें

याचिकाकर्ता की दलीलें भी नहीं चलीं
कमलेसन के वकील गोपाल शंकरनारायणन ने तर्क दिया कि उन्होंने होली और दिवाली जैसे धार्मिक कार्यक्रमों में भाग लेकर सद्भावना दिखाई थी और एक गलती पर कठोर कार्रवाई की गई। उन्होंने संविधान में धर्म की स्वतंत्रता का भी उल्लेख किया, लेकिन अदालत ने इस तर्क को स्वीकार नहीं किया।