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सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार की डिजिटल नोटिस भेजने की याचिका को किया खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार की याचिका को खारिज करते हुए वॉट्सऐप जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से नोटिस भेजने की अनुमति नहीं दी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के तहत नोटिस केवल भौतिक रूप से ही मान्य हैं। इस निर्णय ने निजता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रक्रिया में कठोरता की आवश्यकता को उजागर किया। जानें इस महत्वपूर्ण फैसले के पीछे की वजहें और इसके कानूनी प्रभाव।
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सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार की डिजिटल नोटिस भेजने की याचिका को किया खारिज

सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार की उस याचिका को अस्वीकार कर दिया है जिसमें पुलिस को वॉट्सऐप जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से नोटिस भेजने की अनुमति मांगी गई थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 35 के तहत नोटिस की सेवा केवल भौतिक रूप से ही मान्य है, क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक सेवा को जानबूझकर कानून में शामिल नहीं किया गया है.


निजता और स्वतंत्रता का संरक्षण

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय कानून के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण संदेश देता है, जिसमें निजता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता जैसे संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए प्रक्रिया में कठोरता की आवश्यकता बताई गई है। हरियाणा सरकार ने तर्क दिया था कि डिजिटल युग में वॉट्सऐप एक सुविधाजनक और तेज़ माध्यम है, लेकिन कोर्ट ने इसे अस्वीकार करते हुए कहा कि धारा 35 के अंतर्गत केवल भौतिक नोटिस ही मान्य हैं.


कोर्ट का स्पष्ट रुख

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि BNSS की धारा 35 में वॉट्सऐप या किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से नोटिस भेजने की कोई व्यवस्था नहीं है। जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने बताया कि इसे जानबूझकर कानून में शामिल नहीं किया गया, जो विधायिका की स्पष्ट मंशा को दर्शाता है.


समन और पुलिस नोटिस में अंतर

हरियाणा सरकार ने यह तर्क दिया कि BNSS की धारा 64(2) और 71 में अदालत के समन और गवाहों को बुलाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक माध्यम की अनुमति है, इसलिए धारा 35 में भी इसे मान्यता दी जाए। लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 64(2) में केवल कोर्ट के समन को इलेक्ट्रॉनिक रूप से भेजा जा सकता है, जबकि धारा 71 गवाहों से संबंधित है.


व्यक्तिगत स्वतंत्रता का महत्व

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि धारा 35(6) का उद्देश्य नागरिक की स्वतंत्रता की रक्षा करना है और इसे केवल एक प्रक्रिया मानना गलत होगा। अदालत ने यह भी जोड़ा कि यदि इस प्रावधान को लचीले ढंग से लिया गया, तो यह सीधे संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होगा, जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करता है.