सुप्रीम कोर्ट में POCSO अधिनियम के तहत सहमति की उम्र पर केंद्र का समर्थन

केंद्र का स्पष्ट रुख
सुप्रीम कोर्ट: केंद्र सरकार ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO) के तहत सहमति की उम्र को 18 वर्ष बनाए रखने की मजबूत वकालत की है। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत अपने लिखित बयान में, सरकार ने स्पष्ट किया कि सहमति की उम्र को कम करने या किशोर संबंधों के लिए अपवाद लाने का कोई भी प्रयास नाबालिगों की सुरक्षा को कमजोर करेगा और बाल शोषण के खतरे को बढ़ाएगा।
सहमति की उम्र का महत्व
केंद्र ने न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ के समक्ष जोर देकर कहा, 'अठारह वर्ष की सहमति की वैधानिक आयु को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए। इस मानक में कोई भी बदलाव, सुधार या किशोर स्वायत्तता के नाम पर भी, बाल संरक्षण कानून में दशकों की प्रगति को पीछे धकेलने के समान होगा।' सरकार ने तर्क किया कि सहमति की उम्र को कम करने से नाबालिगों की भेद्यता की वैधानिक धारणा कमजोर होगी, जो POCSO अधिनियम का मूल आधार है।
किशोर संबंधों का अपराधीकरण
केंद्र का यह रुख ऐसे समय में आया है जब देश की अदालतें किशोरों के बीच सहमति से बने संबंधों से जुड़े मामलों की बढ़ती संख्या का सामना कर रही हैं। इन मामलों में अक्सर नाबालिग लड़कों पर POCSO के तहत मुकदमा चलाया जाता है, भले ही पीड़ित ने जबरदस्ती या शोषण की शिकायत न की हो। वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने इस साल की शुरुआत में न्यायमित्र के रूप में तर्क दिया था कि ऐसी अनिवार्य रिपोर्टिंग किशोरों का अपराधीकरण कर रही है और उनकी निजता, स्वास्थ्य अधिकारों को प्रभावित कर रही है।
नीति का सामाजिक संदर्भ
केंद्र ने अपने प्रस्तुतीकरण में जोर देकर कहा, 'सहमति की उम्र अठारह वर्ष करने और उस उम्र से कम उम्र के व्यक्ति के साथ सभी यौन गतिविधियों को, कथित सहमति के बावजूद, अपराध मानने का विधायी निर्णय एक सोची-समझी नीति का परिणाम है।' यह नीति न केवल POCSO अधिनियम में, बल्कि भारतीय दंड संहिता, भारतीय न्याय संहिता, भारतीय वयस्कता अधिनियम, किशोर न्याय अधिनियम और बाल विवाह निषेध अधिनियम जैसे अन्य कानूनों में भी परिलक्षित होती है।
सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ
सरकार ने यह भी रेखांकित किया कि यह नीति भारत की सांस्कृतिक विविधता और सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर बनाई गई है। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा, 'यह नीतिगत निर्णय नाबालिगों की भेद्यता, जबरदस्ती और हेरफेर की सामान्य घटनाओं, और सहमति की अनुपस्थिति को साबित करने की चुनौतियों को ध्यान में रखता है।'
खतरे की चेतावनी
केंद्र ने चेतावनी दी कि सहमति की उम्र कम करने से अभियुक्त के आचरण से ध्यान हटकर नाबालिग की कथित इच्छा पर केंद्रित हो जाएगा, जिससे बाल-केंद्रित न्याय की भावना कमजोर होगी। सरकार ने कहा, 'एक कमजोर कानून सहमति की आड़ में तस्करी और बाल शोषण के अन्य रूपों के द्वार खोलने का जोखिम उठाता है।' इससे पीड़ित को दोषी ठहराए जाने का खतरा भी बढ़ेगा।