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सुप्रीम कोर्ट में SIR पर चुनाव आयोग के फैसले की चुनौती: क्या है मामला?

सुप्रीम कोर्ट ने केरल, उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (SIR) को लेकर चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की सहमति दी है। वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि स्थानीय निकाय चुनावों के मद्देनजर इस मामले की त्वरित सुनवाई आवश्यक है। कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि SIR आदिवासी समुदाय को चुनावी प्रक्रिया से बाहर रखने की एक योजना है। इस मुद्दे पर राजनीतिक और कानूनी बहस जारी है, और सुप्रीम कोर्ट का निर्णय महत्वपूर्ण हो सकता है।
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सुप्रीम कोर्ट में SIR पर चुनाव आयोग के फैसले की चुनौती: क्या है मामला?

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का निर्णय


नई दिल्ली: केरल, उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (SIR) को लेकर चुनाव आयोग के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। इस मामले से संबंधित कई याचिकाओं पर शुक्रवार को सुनवाई करने की अनुमति दी गई। जज सूर्यकांत, जज एस.वी.एन. भट्टी और जज जॉयमाल्या बागची की बेंच ने चुनाव आयोग को इस विषय में नोटिस जारी किया है। अदालत ने उन सभी नई याचिकाओं पर भी सुनवाई की अनुमति दी है, जिनमें विभिन्न राज्यों में SIR प्रक्रिया पर सवाल उठाए गए हैं।


कपिल सिब्बल की दलील

केरल में SIR को चुनौती देने वाले एक पक्ष की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव जल्द ही होने वाले हैं। इसलिए, SIR से संबंधित मामले की त्वरित सुनवाई आवश्यक है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि केरल से संबंधित याचिकाओं की सुनवाई 26 नवंबर को की जाएगी, जबकि अन्य राज्यों में SIR के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई दिसंबर के पहले या दूसरे सप्ताह में होगी।


कई याचिकाओं पर चल रही सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट पहले ही पूरे देश में SIR कराने के चुनाव आयोग के निर्णय को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। 11 नवंबर को अदालत ने द्रमुक, माकपा, पश्चिम बंगाल कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के नेताओं द्वारा दायर याचिकाओं पर आयोग से अलग-अलग जवाब मांगे थे। इन याचिकाओं में तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची की विशेष पुनरीक्षण प्रक्रिया यानी SIR को गलत बताते हुए चुनौती दी गई थी।


कांग्रेस के गंभीर आरोप

कांग्रेस ने इस मामले पर गंभीर आरोप लगाए हैं। पार्टी का कहना है कि मतदाता सूचियों का SIR आदिवासी समुदाय को चुनावी प्रक्रिया से बाहर रखने की एक सोची-समझी योजना है। कांग्रेस के आदिवासी विभाग के प्रमुख विक्रांत भूरिया का कहना है कि आदिवासी आबादी के लिए एक मजबूत प्रवासन नीति बनाई जानी चाहिए, ताकि उनके नाम मतदाता सूचियों से गायब न हों।


उन्होंने मध्य प्रदेश की सिविल जज परीक्षा-2022 के परिणामों पर भी सवाल उठाए। उनका आरोप है कि परीक्षा में एक भी आदिवासी उम्मीदवार का चयन न होना इस बात का संकेत है कि आरक्षण को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है। कुल मिलाकर, SIR को लेकर देशभर में राजनीतिक और कानूनी बहस जारी है और आने वाले समय में सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस मुद्दे को काफी प्रभावित कर सकता है.