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सुप्रीम कोर्ट में संवैधानिक विवाद पर सुनवाई का समापन, फैसले सुरक्षित

सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक विवाद पर 10 दिन की सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। इस मामले में दो न्यायाधीशों की बेंच ने विधानसभा से पारित विधेयकों की मंजूरी के लिए समय सीमा निर्धारित की थी। सुनवाई के दौरान, सॉलिसीटर जनरल ने इस निर्णय को चुनौती दी, जबकि विपक्षी राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन किया। जानें इस महत्वपूर्ण मामले के सभी पहलुओं के बारे में।
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सुप्रीम कोर्ट में संवैधानिक विवाद पर सुनवाई का समापन, फैसले सुरक्षित

संविधान पीठ ने सुरक्षित रखा फैसला

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायाधीशों के निर्णय के कारण उत्पन्न संवैधानिक विवाद पर 10 दिन की सुनवाई के बाद, संविधान पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। अप्रैल में, दो न्यायाधीशों की बेंच ने विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने की एक समय सीमा निर्धारित की थी। अदालत ने यह स्पष्ट किया था कि राज्यपालों और राष्ट्रपति को विधानसभा से पारित विधेयकों पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा। इस संदर्भ में, राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 143 के तहत एक संदर्भ भेजा है। इस निर्णय को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सुनवाई की।


सुनवाई के दौरान उठे महत्वपूर्ण मुद्दे

गुरुवार को सुनवाई के अंतिम दिन, सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से अनुरोध किया कि वह यह स्पष्ट करे कि आठ अप्रैल को दो न्यायाधीशों की बेंच द्वारा राष्ट्रपति और राज्यपाल की मंजूरी की समय सीमा निर्धारित करने का निर्णय सही नहीं था। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि इस निर्णय को सही माना गया, तो भविष्य में बड़ी संख्या में याचिकाएं अदालत में दायर होंगी, जिससे न्यायपालिका पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।


वहीं, वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और अरविंद दातार ने केंद्र के इस तर्क का विरोध किया। उनका कहना था कि राष्ट्रपति ने इस मुद्दे पर कोई प्रश्न नहीं उठाया, इसलिए सुप्रीम कोर्ट को इस पर विचार नहीं करना चाहिए। चीफ जस्टिस बीआर गवई के साथ इस पीठ में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंद्रचूड़ शामिल थे। सुनवाई 19 अगस्त से प्रारंभ हुई थी। इस दौरान, अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार का पक्ष रखा। विपक्षी शासित राज्य जैसे तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल, कर्नाटक, तेलंगाना, पंजाब और हिमाचल प्रदेश ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का समर्थन किया।