स्वतंत्रता संग्राम में वेश्याओं का अदृश्य योगदान

स्वतंत्रता दिवस 2025: एक अनकही कहानी
स्वतंत्रता दिवस 2025: इस वर्ष भारत अपनी 79वीं स्वतंत्रता की वर्षगांठ मना रहा है, और इस अवसर पर बलिदान और संघर्ष की कहानियां आज भी प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं। प्रसिद्ध नेताओं और क्रांतिकारियों के योगदान के अलावा, एक अनदेखा अध्याय है- वेश्याओं का योगदान, जिन्होंने सामाजिक कलंक के बावजूद स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
शोधकर्ता अतनु मित्रा ने इस अनदेखी कहानी को उजागर किया है। उनकी पत्रिका 'अंत्यजा: इंडियन जर्नल ऑफ वीमेन एंड सोशल चेंज' में प्रकाशित लेख और किताब 'फ्रॉम हार्लोट्स टू हीरोइन: इनक्रेडिबल फाइट ऑफ वीमेन इन इंडियन फ्रीडम स्ट्रगल' में इस ऐतिहासिक पहलू का वर्णन किया गया है।
एक भूला हुआ अध्याय
कई वेश्याओं ने आर्थिक रूप से स्वतंत्रता संग्राम का समर्थन किया। उन्होंने अपनी कमाई से क्रांतिकारियों को हथियार, पर्चे और गुप्त कार्यों के लिए दान किया। कुछ ने अपने घरों को भगोड़े स्वतंत्रता सेनानियों के लिए सुरक्षित ठिकाने के रूप में इस्तेमाल किया, जो औपनिवेशिक पुलिस की नजरों से बचते थे। कानपुर जैसे शहरों में, इन महिलाओं ने ब्रिटिश सैनिकों की सेवा करने से मना कर दिया, जो एक मूक लेकिन प्रभावशाली प्रतिरोध था।
भारत की आजादी में वेश्याओं का योगदान
पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर जिले में, जहां स्वतंत्रता संग्राम उग्र था, वेश्याओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सबित्री देवी, एक मछली बाजार की वेश्या, ने 1930 में कांग्रेस नेताओं से प्रेरित होकर नमक सत्याग्रह में भाग लिया। उन्होंने 800 महिलाओं को प्रेरित किया और घायलों की सहायता की। उनकी बहादुरी के सम्मान में तमलूक के एक पुल का नाम 'सबित्री ब्रिज' रखा गया।
— Arindam Bhowmik (@arindambhowmik) April 5, 2025
कला के माध्यम से योगदान
वेश्याओं ने अपनी कला- नृत्य, गीत और कविता के जरिए राष्ट्रवादी विचारों को फैलाया। उनके प्रदर्शन राजनीतिक संदेशों को जन-जन तक पहुंचाते थे, जो पर्चों या भाषणों से कहीं अधिक प्रभावी थे। इन महिलाओं ने न केवल औपनिवेशिक शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी, बल्कि सामाजिक भेदभाव को भी चुनौती दी। उनकी कहानियां हमें याद दिलाती हैं कि स्वतंत्रता संग्राम केवल नेताओं तक सीमित नहीं था, बल्कि इसमें हाशिए पर रहने वाली महिलाओं की वीरता भी शामिल थी।