हरपल्ली रवींद्र: शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव लाने वाला एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व

हरपल्ली रवींद्र की प्रेरणादायक कहानी
आज हम आपको एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनकी मेहनत ने हजारों बच्चों के भविष्य को संवार दिया है। यह कहानी है हरपल्ली रवींद्र की, जिनके दिल में एक अधूरा सपना था, जिसने कोडागु में शिक्षा के एक बड़े आंदोलन की नींव रखी।हरपल्ली रवींद्र का बचपन सोमवारपेट तालुक के एक छोटे से गांव शांतल्ली में बीता। उस समय उनके मन में एक ही इच्छा थी कि काश उनके गांव में भी एक अंग्रेजी माध्यम का स्कूल होता। जब वह शहर के बच्चों को अंग्रेजी बोलते देखते, तो उन्हें लगता कि वह पीछे रह गए हैं। यह भावना उनके मन में गहराई से बैठ गई।
रवींद्र ने खुद से अंग्रेजी सीखी और अपनी पढ़ाई पूरी की। बाद में वह बेंगलुरु में एक सफल उद्यमी बने। लेकिन उन्होंने अपने बचपन के अधूरे सपने को कभी नहीं भुलाया। उन्हें हमेशा यह चिंता रहती थी कि उनके इलाके के अन्य बच्चों को वही कठिनाइयाँ न झेलनी पड़े। यही सोच उनके लिए एक मिशन बन गई।
2016 में, रवींद्र ने गांव वालों के साथ मिलकर अपने सपने को साकार करने की दिशा में पहला कदम उठाया। उन्होंने शांतल्ली में पहला अंग्रेजी माध्यम स्कूल स्थापित किया।
यह शुरुआत बहुत साधारण थी। पहले वर्ष में केवल 8 बच्चों ने दाखिला लिया, लेकिन आज वहां 200 से अधिक बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं और 15 शिक्षक हैं। रवींद्र ने देखा कि दूर-दराज के गांवों से बच्चों को स्कूल आने में कठिनाई होती है, इसलिए उन्होंने पांच स्कूल वैन भी शुरू कीं। उन्होंने इस काम में अपनी कमाई के लाखों रुपये लगाए, लेकिन वह इस पर चर्चा करना पसंद नहीं करते। उनका कहना है, "मुझे प्रचार नहीं, परिणाम चाहिए।"
रवींद्र का यह अभियान केवल स्कूल तक सीमित नहीं है। वह हर साल 8 से 10 लाख रुपये खर्च करके सोमवरपेट तालुक के गरीब परिवारों के बच्चों को मुफ्त यूनिफॉर्म, किताबें और फीस में छूट प्रदान करते हैं।
बेंगलुरु में, उन्होंने कोडागु के जरूरतमंद बच्चों के लिए एक हॉस्टल स्थापित किया है, जहां हर साल 100 से अधिक छात्रों को रहने और पढ़ने में सहायता मिलती है। उच्च शिक्षा के लिए, उन्होंने ग्रामीण छात्रों के लिए 100 से अधिक हॉस्टल सीटों की व्यवस्था की है और सोमवरपेट में लड़कियों के लिए एक मुफ्त छात्रावास बनाने की सिफारिश की है।
आज हरपल्ली रवींद्र कोडागु के बच्चों के लिए केवल एक सहायक नहीं, बल्कि एक उम्मीद की किरण बन गए हैं। उन्होंने अपने बचपन की कमी को एक ऐसे आंदोलन में बदल दिया है, जो आने वाली पीढ़ियों को बेहतर शिक्षा और अवसर प्रदान करेगा।