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हाजीपीर पास: 1965 के युद्ध का महत्वपूर्ण मोड़ और मोदी का बयान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा करते हुए हाजीपीर पास के महत्व को उजागर किया। उन्होंने 1965 के युद्ध में भारतीय सेना की सफलता और ताशकंद समझौते के संदर्भ में महत्वपूर्ण सवाल उठाए। जानें, हाजीपीर पास का ऐतिहासिक और रणनीतिक महत्व क्या है, और क्यों यह भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ है।
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हाजीपीर पास: 1965 के युद्ध का महत्वपूर्ण मोड़ और मोदी का बयान

प्रधानमंत्री मोदी का भाषण

लोकसभा में ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा के दौरान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगभग 100 मिनट का विस्तृत भाषण दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि सीजफायर के लिए उन्हें किसी विदेशी नेता से फोन नहीं आया, जिससे यह साबित होता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गलत जानकारी दी। इसके साथ ही, मोदी ने यह सवाल उठाया कि 1965 में जब भारतीय सेना ने हाजीपीर पास पर कब्जा किया था, तो उसे वापस क्यों सौंपा गया?


हाजीपीर पास का इतिहास

यह मामला 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध से संबंधित है। वर्तमान में, हाजीपीर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में स्थित है। युद्ध के दौरान, मई 1965 में, पाकिस्तानी सेना ने तीन पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया और श्रीनगर-लेह राजमार्ग पर तोपखाने से हमला किया।


पाकिस्तान का उद्देश्य कश्मीर से भारतीय शासन को समाप्त करना और वहां एक कठपुतली सरकार स्थापित करना था। इसके लिए, उन्होंने ऑपरेशन जिब्राल्टर की शुरुआत की, जिसमें कश्मीर में गुरिल्लाओं की घुसपैठ कराना और स्थानीय लोगों को विद्रोह के लिए भड़काना शामिल था.


भारतीय सेना की सफलता


हालांकि, पाकिस्तान को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा। 15 अगस्त 1965 को भारतीय सेना ने संघर्षविराम रेखा को पार किया और उन पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया, जहां से पाकिस्तानी सेना ऑपरेशन चला रही थी। 28 अगस्त को भारतीय सेना ने हाजीपीर पास पर कब्जा कर लिया, जिससे पाकिस्तानी सेना भाग गई।


ताशकंद समझौता

बाद में, भारत और पाकिस्तान के बीच ताशकंद समझौता हुआ, जिसके तहत भारत ने हाजीपीर पास को पाकिस्तान को वापस सौंप दिया। इस निर्णय की व्यापक आलोचना हुई। यह शांति समझौता 10 जनवरी 1966 को हुआ, जिसका उद्देश्य भारत-पाकिस्तान युद्ध को समाप्त करना था.


हाजीपीर पास का महत्व

हाजीपीर पास भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि यह भारत के नियंत्रण में होता, तो पुंछ और उरी के बीच की दूरी 282 किलोमीटर से घटकर केवल 56 किलोमीटर रह जाती। यह 2,637 मीटर (8,652 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है और ऐतिहासिक रूप से जम्मू और कश्मीर घाटी को जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण मार्ग रहा है।