हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक खेती का बढ़ता चलन

प्राकृतिक खेती की लोकप्रियता
हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक खेती तेजी से लोकप्रिय हो रही है। राज्य की 3,584 पंचायतों में 38,437 हेक्टेयर भूमि पर 2,22,893 से अधिक किसान पर्यावरण के अनुकूल तरीके से विभिन्न फसलें उगा रहे हैं। यह जानकारी अधिकारियों ने मंगलवार को साझा की।
सरकार ने एक बयान में बताया कि 3.06 लाख किसानों को प्राकृतिक खेती के तरीकों का प्रशिक्षण दिया गया है। इसके साथ ही, वर्ष 2025-26 तक एक लाख नए किसानों को इस पहल में शामिल करने का लक्ष्य रखा गया है। अब तक 88 विकास खंडों के 59,068 किसानों और बागवानी करने वालों ने कृषि विभाग में पंजीकरण फॉर्म जमा किए हैं।
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा, 'राज्य की लगभग 90 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में निवास करती है और कृषि उनका मुख्य व्यवसाय है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करना हमारी प्राथमिकता है। पिछले ढाई वर्षों में, हमने किसानों को सशक्त बनाने और उनकी आय में वृद्धि के लिए कई योजनाएं लागू की हैं।'
हिमाचल प्रदेश सरकार प्राकृतिक उत्पादों के लिए देश में सबसे अधिक न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) भी प्रदान कर रही है। वर्तमान में, राज्य सरकार प्राकृतिक खेती से उगाए गए मक्के के लिए 40 रुपये प्रति किलोग्राम, गेहूं के लिए 60 रुपये प्रति किलोग्राम, कच्ची हल्दी के लिए 90 रुपये प्रति किलोग्राम और पांगी क्षेत्र से प्राप्त जौ के लिए 60 रुपये प्रति किलोग्राम का एमएसपी दे रही है।
किसानों को और अधिक सहायता प्रदान करने के लिए, सरकार ने 'प्राकृतिक खेती-आधारित सतत खाद्य प्रणाली' की शुरुआत की है। इसके तहत, राज्य सरकार और नाबार्ड से 50-50 प्रतिशत वित्तीय सहायता के साथ किसान-उत्पादक कंपनियां (एफपीसी) स्थापित की जा रही हैं। अब तक, राज्य में सात एफपीसी स्थापित की जा चुकी हैं।
राज्य सरकार हिम-भोग ब्रांड के तहत प्राकृतिक खेती से उगाए गए उत्पादों को बढ़ावा दे रही है, जिससे उपभोक्ताओं को अत्यधिक पौष्टिक और रसायन-मुक्त उत्पाद मिल सकें।