हिमालय में बर्फबारी की कमी: जल संकट और कृषि पर गंभीर प्रभाव
नई दिल्ली में बढ़ता प्राकृतिक संकट
नई दिल्ली: हिमालय के क्षेत्र में तापमान में निरंतर वृद्धि और बर्फबारी में कमी के चलते एक गंभीर प्राकृतिक संकट उत्पन्न हो रहा है। मौसम की असामान्य स्थितियों ने पहाड़ों को संवेदनशील बना दिया है, जिससे कृषि, बागवानी और पर्यटन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। विशेषज्ञों का मानना है कि बर्फबारी और वर्षा की कमी के कारण हिमालयी ग्लेशियरों का पुनर्भरण नहीं हो पा रहा है, जिससे जल स्रोतों और नदियों पर संकट उत्पन्न हो रहा है।
मौसम चक्र में बदलाव
कई मौसम एजेंसियों ने चेतावनी दी है कि वर्तमान मौसम चक्र पिछले वर्षों से भिन्न है और दिसंबर के अंत तक राहत की कोई संभावना नहीं है। पहले, पश्चिमी विक्षोभ अक्टूबर के मध्य से सक्रिय होते थे, जो नवंबर और दिसंबर में भारी बर्फबारी लाते थे, लेकिन इस बार मौसम अत्यधिक शुष्क बना हुआ है।
बर्फबारी की कमी और संवेदनशीलता
हाल के वर्षों में हिमालय में बर्फ लंबे समय तक नहीं टिक पा रही है। लगातार बारिश और बर्फबारी की कमी के कारण स्नो कवर जमा नहीं हो पा रहा है, जिससे सतह तेजी से पिघल रही है और पहाड़ और भी संवेदनशील बन रहे हैं।
मौसम एजेंसियों के अनुसार, 20 और 21 दिसंबर के आसपास एक सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ आने की संभावना है, लेकिन इसका प्रभाव जम्मू-कश्मीर और लद्दाख तक सीमित रह सकता है। हिमाचल प्रदेश में कुछ क्षेत्रों में हल्की बारिश या बर्फबारी हो सकती है, जबकि उत्तराखंड पूरी तरह सूखा रह सकता है।
ग्लेशियरों और नदियों पर प्रभाव
ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं और नई बर्फबारी की अनुपस्थिति में उनका पुनर्भरण नहीं हो पा रहा है। इससे हिमालयी नदियों में पानी का बहाव कम हो रहा है, जिससे मैदानी क्षेत्रों में जल संकट उत्पन्न हो सकता है। यह लंबे समय तक चलने वाला शुष्क मौसम जल स्रोतों पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है।
कृषि और पर्यटन पर असर
बर्फबारी और बारिश में कमी का सबसे बड़ा प्रभाव कृषि और बागवानी पर पड़ा है। सेब की खेती पर विशेष संकट है और आने वाले सीजन की पैदावार प्रभावित होने की संभावना है। इसके अलावा, पर्यटन क्षेत्र भी असामान्य मौसम से प्रभावित हुआ है। हिल स्टेशन और स्कीइंग रिसॉर्ट्स में बर्फ की कमी के कारण पर्यटकों की संख्या में कमी आई है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ा है।
भविष्य की चेतावनी
मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि हिमालयी ग्लेशियरों और नदियों के लगातार पिघलने से केवल पहाड़ों में ही नहीं बल्कि मैदानी क्षेत्रों में भी गंभीर संकट आने की संभावना है। इसलिए जल संरक्षण और पर्यावरणीय उपायों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
