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क्या वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2023 संविधान के खिलाफ है? सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू

भारत का सुप्रीम कोर्ट बुधवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2023 की संवैधानिक वैधता पर सुनवाई करेगा। इस अधिनियम के खिलाफ देशभर में विरोध हो रहा है, जिसमें आलोचकों का कहना है कि यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। सरकार का दावा है कि यह कानून वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में सुधार लाएगा। इस मामले में 73 याचिकाएँ दायर की गई हैं, जिनमें राजनीतिक दलों का भी समर्थन है। जानें इस विवाद के पीछे की कहानी और सुप्रीम कोर्ट का संभावित निर्णय।
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सुप्रीम कोर्ट में वक्फ (संशोधन) अधिनियम की सुनवाई

भारत का सर्वोच्च न्यायालय बुधवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम की संवैधानिक वैधता पर सुनवाई करेगा, जिसके खिलाफ देशभर में व्यापक विरोध और आपत्तियाँ उठ रही हैं। यह सुनवाई न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की तीन सदस्यीय पीठ द्वारा दोपहर 2 बजे शुरू होगी।


विवाद और आलोचनाएँ

वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2023, जिसे हाल ही में संसद द्वारा पारित किया गया, ने धार्मिक समुदायों के बीच विवाद उत्पन्न किया है। आलोचकों का कहना है कि यह कानून मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है और वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में अनावश्यक हस्तक्षेप करता है। उनका तर्क है कि यह संशोधन मुस्लिम समुदाय के धार्मिक अधिकारों पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा और भेदभावपूर्ण है।


सरकार का पक्ष

सरकार का कहना है कि इस अधिनियम का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के कुशल प्रबंधन और पारदर्शिता को सुनिश्चित करना है। सरकार ने यह भी दावा किया है कि इस संशोधन से वक्फ संपत्तियों का बेहतर प्रशासन होगा और इसमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होगा। कई राजनीतिक दल और संगठनों ने इस कानून का समर्थन किया है, जिसमें सात राज्य भी शामिल हैं, जिन्होंने शीर्ष अदालत में हस्तक्षेप की मांग की है।


याचिकाओं का मुद्दा

वक्फ (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ कुल 73 याचिकाएँ दायर की गई हैं। इनमें कुछ याचिकाएँ 1995 के मूल वक्फ अधिनियम के खिलाफ भी हैं, जिनमें हिंदू पक्षकारों ने आपत्ति जताई है। याचिकाओं में यह भी कहा गया है कि वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में हस्तक्षेप करने से मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन होता है। कुछ याचिकाकर्ताओं ने अधिनियम पर अंतरिम रोक लगाने की भी मांग की है।


राजनीतिक दलों की भागीदारी

इस मामले में राजनीतिक दलों की सक्रिय भागीदारी है। याचिकाकर्ताओं में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, सीपीआई, आरजेडी, जेडीयू, एआईएमआईएम, आप और भारतीय यूनियन मुस्लिम लीग जैसे प्रमुख दल शामिल हैं। इन दलों का कहना है कि यह संशोधन मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों के खिलाफ है और इससे समुदाय में असंतोष फैल सकता है।


संसद में संशोधन का समर्थन

वक्फ (संशोधन) अधिनियम को 5 अप्रैल को संसद के दोनों सदनों में गरमागरम बहस के बाद पारित किया गया। राज्यसभा में 128 सदस्यों के समर्थन और 95 के विरोध में, जबकि लोकसभा में 288 मतों के समर्थन और 232 के विरोध में इसे मंजूरी मिली। इसके बाद, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इसे स्वीकृति दी, और यह कानून बन गया।


केंद्र सरकार की कानूनी प्रक्रिया

केंद्र सरकार ने इस मामले में कैविएट दाखिल किया है, ताकि किसी भी आदेश से पहले उसकी बात सुनी जा सके। यह कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा है, जिससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि सरकार को निर्णय में भाग लेने का मौका मिले। इस पूरी प्रक्रिया से यह स्पष्ट है कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम ने देशभर में एक व्यापक बहस और विवाद को जन्म दिया है, और अब इसका अंतिम निर्णय सुप्रीम कोर्ट द्वारा किया जाएगा।