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HSSC मेरिट लिस्ट पर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: नियुक्तियों का भविष्य अधर में

हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग (HSSC) की मेरिट लिस्ट पर पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने गंभीर सवाल उठाए हैं। अदालत ने कहा है कि चयनित उम्मीदवारों की नियुक्ति तभी सुरक्षित मानी जाएगी जब मेरिट लिस्ट सामाजिक-आर्थिक मानदंड के अंकों को शामिल किए बिना बनाई गई हो। इस मामले में अगली सुनवाई 28 नवंबर को होगी, जो इस विवाद का महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकती है। जानें इस मामले की पूरी जानकारी और क्या है HSSC का दावा।
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HSSC मेरिट लिस्ट पर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: नियुक्तियों का भविष्य अधर में

HSSC मेरिट लिस्ट पर सवाल उठे

HSSC मेरिट लिस्ट: हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग (HSSC) द्वारा पिछले वर्ष जारी की गई 24 ग्रुप की ग्रुप C चयन सूची और संबंधित नियुक्तियों पर गंभीर प्रश्न उठ खड़े हुए हैं।


पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा है कि इन उम्मीदवारों की नियुक्ति तभी सुरक्षित मानी जाएगी, जब यह मेरिट लिस्ट सामाजिक-आर्थिक मानदंड (SEBC) के अंकों को शामिल किए बिना तैयार की गई हो।


इसका मतलब यह है कि अब इन 24 ग्रुप के चयनित उम्मीदवारों की नौकरी का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि मेरिट किस आधार पर बनाई गई थी।


HSSC को एफिडेविट पेश करने का निर्देश

HSSC को दायर करना होगा एफिडेविट


सुनवाई के दौरान हरियाणा के एडवोकेट जनरल, प्रविंद्र चौहान ने बताया कि चयनित उम्मीदवारों को सामाजिक-आर्थिक मानदंड के अंक नहीं दिए गए थे।
लेकिन इस पर कुछ प्रतिवादी पक्ष ने सवाल उठाए, जिसके बाद खंडपीठ ने HSSC को स्पष्ट निर्देश दिया है कि वह एफिडेविट दायर कर पूरी जानकारी प्रस्तुत करे।


एफिडेविट में शामिल करने होंगे ये विवरण

एफिडेविट में यह सभी विवरण देने होंगे:


उम्मीदवारों के CET परीक्षा में प्राप्त अंक


रोल नंबर


नाम


हर ग्रुप व कैटेगरी की कट-ऑफ


और किस आधार पर नियुक्तियां दी गईं


अगली सुनवाई की तारीख

अगली सुनवाई 28 नवंबर को


जस्टिस अश्वनी कुमार मिश्रा और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा की खंडपीठ ने 14 नवंबर को सुनवाई के बाद अपने निर्देश जारी किए।
अब इस मामले की अगली सुनवाई 28 नवंबर को होगी, जो इस पूरे विवाद का अगला महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकती है।


आयोग ने यह भी दावा किया कि उसने दो लिस्टें बनाई थीं—


एक लिस्ट में सामाजिक-आर्थिक मानदंड के अंक शामिल थे


दूसरी में नहीं


दोनों लिस्टों में जो उम्मीदवार सामान्य (common) थे, उनका ही चयन किया गया।
अब कोर्ट इस पूरे दावे की सच्चाई को अगली सुनवाई में परखेगा।