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अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव: लोक संस्कृति का अद्भुत उत्सव

कुरुक्षेत्र में आयोजित अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव लोक संस्कृति का एक अद्भुत उत्सव है, जहां विभिन्न राज्यों के कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं। इस महोत्सव में बीन, बांसुरी, ढोल और डेरू जैसे वाद्ययंत्रों की धुनें गूंज रही हैं। इसके अलावा, आयुर्वेदिक गोलियों और खट्टी-मीठी टोफियों का भी आनंद लिया जा सकता है। जानें इस महोत्सव की खासियतें और कलाकारों की मेहनत के बारे में।
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अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव: लोक संस्कृति का अद्भुत उत्सव

कुरुक्षेत्र में लोक संस्कृति का जश्न

कुरुक्षेत्र (अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव): विलुप्त होती लोक संस्कृति को संजोने और जीवंत रखने के लिए अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव एक महत्वपूर्ण मंच बन गया है। विभिन्न राज्यों से आए लोक कलाकार अपनी सांस्कृतिक धरोहर से पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर रहे हैं। सरोवर के किनारे बीन और बांसुरी की मधुर धुनें गूंज रही हैं, वहीं ढोल-नगाड़े भी बज रहे हैं। इसके साथ ही डेरू भी दर्शकों को रोमांचित कर रहा है।


लोक कला का अद्भुत प्रदर्शन

बीन, बांसुरी, नगाड़े व डेरू वादक, साथ ही कच्ची घोड़ी और राजस्थानी लोक कला के अन्य कलाकारों ने महोत्सव में चार चांद लगा दिए हैं। पर्यटक इन वाद्ययंत्रों का आनंद ले रहे हैं। महोत्सव के दौरान ब्रह्मसरोवर के चारों ओर लोक सांस्कृतिक कला का रंग धर्मनगरी के साथ-साथ देश-विदेश में भी देखने को मिल रहा है।


आयुर्वेदिक गोलियों का स्वाद

सरस और शिल्प मेले में स्टॉल नंबर 12 पर बच्चों के लिए लगभग 40 प्रकार की खट्टी-मीठी टोफियां और बड़ों के लिए आयुर्वेदिक गोलियां उपलब्ध हैं, जो शुगर और वजन कम करने में मददगार साबित हो रही हैं।


स्टॉल पर कार्यरत गौरव शर्मा और विकास शर्मा ने बताया कि वे हर साल इस महोत्सव में भाग लेते हैं। उनके स्टॉल पर 40 प्रकार के उत्पाद हैं, जिन्हें वे और उनकी टीम खुद बनाते हैं, जिसमें लगभग 12 लोग शामिल हैं।


बच्चों के लिए ये सभी गोलियां पूरी स्वच्छता के साथ बनाई जाती हैं। स्टॉल पर आम पापड़, अनारदाना, मद्रासी मैंथी, शहद आंवला, हींग पेड़ा, रोस्टेड अलसी सहित कई आयुर्वेदिक उत्पाद उपलब्ध हैं।


International Gita Mahotsav में धूम

महोत्सव में दिल्ली से आए दयाचंद पिछले 15 वर्षों से आ रहे हैं। उन्होंने हस्त शिल्प कला की गाथा लिखी है, जिसके लिए उन्हें 2005 में एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वे दिल्ली से टेराकोटा की मिट्टी से बने फ्लावर पॉट, सजावट का सामान, सुराही, राजस्थानी मूर्तियां, उरली, वॉल क्लॉक आदि लेकर आए हैं, जिनकी कीमत 250 से तीन हजार रुपये तक है।


वे स्वयं इस सामान को बनाते हैं और स्टॉल नंबर 68-69 पर इसे प्रदर्शित कर रहे हैं। इसके साथ ही, वे आम जनता को अपनी हस्त शिल्प कला भी सिखा रहे हैं, जिससे कई लोगों को रोजगार मिल रहा है।