Newzfatafatlogo

अटल बिहारी वाजपेयी की राष्ट्रपति पद की पेशकश का खुलासा

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल पर एक नई किताब में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। अशोक टंडन द्वारा लिखी गई 'अटल संस्मरण' में बताया गया है कि बीजेपी ने वाजपेयी को राष्ट्रपति और आडवाणी को प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव रखा था, जिसे वाजपेयी ने ठुकरा दिया। इस पुस्तक में वाजपेयी और आडवाणी के रिश्तों की गहराई, साथ ही 2001 के संसद हमले के दौरान की घटनाओं का भी जिक्र है। जानें इस किताब में और क्या है खास।
 | 
अटल बिहारी वाजपेयी की राष्ट्रपति पद की पेशकश का खुलासा

वाजपेयी के कार्यकाल का नया खुलासा

नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल और भारतीय राजनीति के महत्वपूर्ण निर्णयों पर एक नया खुलासा हुआ है। वाजपेयी के मीडिया सलाहकार अशोक टंडन ने अपनी नई पुस्तक 'अटल संस्मरण' में बताया है कि डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति बनाने से पहले भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में एक अलग राजनीतिक स्थिति बन रही थी। पार्टी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी को राष्ट्रपति भवन भेजने और लालकृष्ण आडवाणी को प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव रखा था। हालांकि, वाजपेयी ने इस सुझाव को नकारते हुए इसे भारतीय लोकतंत्र के लिए गलत परंपरा बताया।


इस पुस्तक में टंडन ने लिखा है कि वाजपेयी इस विचार के लिए तैयार नहीं थे। उनका मानना था कि किसी लोकप्रिय प्रधानमंत्री का केवल बहुमत के आधार पर राष्ट्रपति बनना संसदीय लोकतंत्र के लिए उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि यह एक गलत मिसाल पेश करेगा और वह ऐसे किसी भी कदम का समर्थन नहीं कर सकते। इस प्रस्ताव को ठुकराने के बाद, वाजपेयी ने राष्ट्रपति पद के लिए आम सहमति बनाने की दिशा में काम करना शुरू किया और डॉ. कलाम का नाम आगे बढ़ाया।


किताब में उस ऐतिहासिक बैठक का भी उल्लेख है जब वाजपेयी ने पहली बार विपक्ष के सामने डॉ. कलाम का नाम रखा। वाजपेयी ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, प्रणब मुखर्जी और डॉ. मनमोहन सिंह को बातचीत के लिए आमंत्रित किया था। जब वाजपेयी ने बताया कि एनडीए ने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को अपना उम्मीदवार चुना है, तो कमरे में कुछ पल के लिए सन्नाटा छा गया। सोनिया गांधी ने कहा कि वे इस चयन से हैरान हैं, लेकिन उन्होंने अंतिम निर्णय से पहले चर्चा करने की बात कही। अंततः 2002 में कलाम पक्ष और विपक्ष के साझा उम्मीदवार बने।


किताब में वाजपेयी और आडवाणी के रिश्तों की गहराई को भी दर्शाया गया है। टंडन ने लिखा है कि नीतिगत मतभेदों की अफवाहों के बावजूद, दोनों नेताओं के संबंध कभी सार्वजनिक रूप से खराब नहीं हुए। आडवाणी हमेशा वाजपेयी को अपना 'नेता और प्रेरणा स्रोत' मानते थे, जबकि वाजपेयी उन्हें अपना 'अटूट साथी' कहते थे। इसके अलावा, किताब में 2001 के संसद हमले के दौरान का एक भावुक किस्सा भी साझा किया गया है। हमले के समय सोनिया गांधी ने फोन करके वाजपेयी की सुरक्षा की चिंता जताई थी, जिस पर वाजपेयी ने कहा कि वे सुरक्षित हैं, लेकिन उन्हें चिंता थी कि कहीं सोनिया गांधी संसद भवन में तो नहीं हैं। यह घटना उस समय की राजनीतिक शिष्टाचार और मानवीय मूल्यों को दर्शाती है।