अमित शाह का बड़ा बयान: सिंधु जल संधि अब नहीं होगी बहाल, राजस्थान को मिलेगा पानी

सिंधु जल संधि पर अमित शाह का स्पष्ट रुख
नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने स्पष्ट किया है कि भारत और पाकिस्तान के बीच 64 साल पुरानी सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) को अब दोबारा लागू नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि भारत अब इस जल का उपयोग अपने हित में करेगा और एक नई नहर बनाकर उस पानी को राजस्थान तक पहुंचाने की योजना है। यह बयान पाकिस्तान की बार-बार की अपीलों और आपत्तियों के बीच आया है, जिसमें इस संधि को फिर से लागू करने की मांग की गई थी.
सिंधु जल संधि का इतिहास
साल 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता से सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर हुए थे। इस संधि के तहत भारत और पाकिस्तान को सिंधु नदी प्रणाली की कुछ नदियों पर विशेषाधिकार प्राप्त हुए थे। भारत को पूर्व की तीन नदियों – रावी, व्यास और सतलज – और पाकिस्तान को पश्चिम की तीन नदियों – सिंधु, झेलम और चिनाब – के जल उपयोग का अधिकार मिला था.
पहलगाम हमले के बाद संधि का निलंबन
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 नागरिकों की जान चली गई थी। इस घटना के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान की भूमिका पर सवाल उठाते हुए संधि को "अस्थायी रूप से निलंबित" कर दिया था। भारत ने स्पष्ट किया कि जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद का समर्थन करता रहेगा, तब तक इस संधि पर पुनर्विचार नहीं किया जाएगा.
पाकिस्तान की अपील और भारत का ठोस रुख
पाकिस्तान ने अप्रैल के बाद से अब तक चार बार भारत को पत्र लिखे हैं। पाकिस्तान के जल संसाधन सचिव सैयद अली मुर्तज़ा ने भारत के जल शक्ति मंत्रालय को बार-बार संधि बहाल करने की अपील की है। उन्होंने कहा कि भारत का यह कदम संधि की शर्तों का उल्लंघन है और इसे एकतरफा रूप से निलंबित नहीं किया जा सकता.
अमित शाह का सख्त संदेश
अमित शाह ने कहा, "हम वो पानी जो अब तक पाकिस्तान को मिल रहा था, उसे अब अपने उपयोग में लाएंगे। एक बड़ी नहर बनाकर उसे राजस्थान तक पहुंचाया जाएगा। पाकिस्तान को अब वो पानी नहीं मिलेगा, जो उसे अनुचित रूप से मिल रहा था."
अंतरराष्ट्रीय कानून की स्थिति
पाकिस्तान का कहना है कि यह फैसला संधि का उल्लंघन है। लेकिन भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह स्थिति पहले भी स्पष्ट की है कि किसी भी समझौते का पालन तभी तक किया जाएगा, जब तक दोनों पक्षों का व्यवहार पारस्परिक रूप से जिम्मेदार हो। भारत का यह रुख अब राष्ट्रीय सुरक्षा से भी जोड़ा जा रहा है.