अमेरिका का बासमती चावल पर 50% टैरिफ: भारतीय किसानों की चिंता बढ़ी

अमेरिकी टैरिफ का प्रभाव
अंतरराष्ट्रीय समाचार: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय बासमती चावल पर 50% तक का टैरिफ लगाने का निर्णय लिया है। यह कदम 7 अगस्त को जारी आदेश के बाद उठाया गया है। नया टैरिफ 28 अगस्त से लागू होगा, जिससे भारतीय किसानों और व्यापारियों में चिंता का माहौल है। यह टैरिफ भारत पर रूस से तेल खरीदने के कारण लगाया गया है। अमेरिका ने पहले से मौजूद 25% टैरिफ के साथ 25% अतिरिक्त पेनल्टी जोड़कर कुल टैक्स 50% कर दिया है। इसका सीधा असर बासमती चावल के निर्यात पर पड़ा है।
पाकिस्तान की तुलना में महंगा
अमेरिका में पाकिस्तान पर लागू टैरिफ केवल 19% है। इस कारण भारतीय चावल अमेरिकी बाजार में 31% महंगा हो गया है, जिससे अमेरिकी ग्राहक अब पाकिस्तान से चावल खरीदने की ओर बढ़ रहे हैं।
बासमती की कीमतों में गिरावट
बासमती की प्रमुख किस्में जैसे 1121 और 1509 की कीमतें पहले ₹4,500 प्रति क्विंटल से घटकर ₹3,500-₹3,600 तक आ गई हैं। अब आशंका है कि यह कीमत ₹3,000 तक पहुंच सकती है। यह स्थिति किसानों के लिए गंभीर संकट पैदा कर रही है। विदेशी खरीदारों की मांग में कमी आई है, जिससे निर्यात में गिरावट आई है। मंडियों में नया माल भी पहले की तुलना में सस्ते दाम पर बिक रहा है। जिन किसानों ने महंगे दाम पर बीज और खाद खरीदी थी, वे अब घाटे में हैं। यदि यह गिरावट जारी रही, तो कई किसान कर्ज के बोझ तले दब सकते हैं।
किसानों की बदलती प्राथमिकताएं
पंजाब के किसान गुरबक्शिश सिंह का कहना है कि यदि स्थिति यही रही, तो वे बासमती की खेती छोड़कर साधारण धान की खेती करने पर विचार करेंगे। साधारण धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) ₹2,400 प्रति क्विंटल से अधिक है, जो उन्हें सुरक्षित विकल्प लगता है। उनका कहना है कि बासमती की खेती में लागत अधिक और मुनाफा कम होता जा रहा है। किसान बताते हैं कि उर्वरक, पानी और मज़दूरी की लागत बढ़ गई है, जबकि बासमती की कीमतें गिर रही हैं। कई किसान पहले ही अपनी जमीन का कुछ हिस्सा साधारण धान में बदल चुके हैं। यदि टैरिफ का प्रभाव लंबे समय तक बना रहा, तो पंजाब-हरियाणा में बासमती की खेती में कमी आ सकती है।
भारतीय चावल की बढ़ती लागत
अमेरिका में एक टन बासमती चावल की कीमत 1,200 डॉलर है, लेकिन भारत से आने पर यह 600 डॉलर और महंगा हो जाता है। वहीं, पाकिस्तान से आने वाला चावल केवल 228 डॉलर महंगा है। यही कारण है कि पुराने स्टॉक की बिक्री भी रुक गई है। व्यापारी बताते हैं कि अमेरिकी खरीदार अब भारतीय चावल के बजाय पाकिस्तानी चावल को प्राथमिकता दे रहे हैं, जिससे भारतीय ब्रांड की प्रतिष्ठा को नुकसान हो रहा है। गोदामों में पड़ा माल लंबे समय तक रखने से खराब होने का खतरा है। यदि निर्यात के ऑर्डर नहीं मिलते हैं, तो मिल मालिकों को और अधिक घाटा उठाना पड़ सकता है।
व्यापारियों की चुनौतियाँ
बासमती एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के रंजीत सिंह जोसन का कहना है कि पाकिस्तान के व्यापारी ऑर्डर ले रहे हैं, लेकिन भारतीय कारोबारी कीमत के अंतर के कारण पीछे हट रहे हैं। जब तक स्थिति में सुधार नहीं होता, नए सौदों की संभावना कम है। वे बताते हैं कि कई निर्यातक अपने कर्मचारियों को काम से निकालने पर मजबूर हो रहे हैं। शिपिंग कंपनियों के साथ पुराने कॉन्ट्रैक्ट भी टूट सकते हैं। बैंकों से लिए गए कर्ज का भुगतान करना व्यापारियों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। यदि सरकार ने जल्द हस्तक्षेप नहीं किया, तो यह संकट बासमती उद्योग को लंबे समय तक प्रभावित कर सकता है।