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अमेरिका में ब्राज़ीली प्रवासियों का डर: ICE की छापेमारी से हड़कंप

अमेरिका के मैसाचुसेट्स में ब्राज़ीली प्रवासियों के बीच ICE की छापेमारी से गहरी चिंता का माहौल है। स्थानीय संगठनों के अनुसार, तीन लाख से अधिक लोग इस डर में जी रहे हैं कि उन्हें कभी भी गिरफ्तार किया जा सकता है। व्हाट्सऐप ग्रुप्स अब उनकी सुरक्षा का मुख्य साधन बन गए हैं, लेकिन अफवाहों और तनाव ने उनकी ज़िंदगी को कठिन बना दिया है। सैंक्चुअरी सिटी होने के बावजूद, प्रवासियों को अब भी असुरक्षा का सामना करना पड़ रहा है। जानें इस स्थिति का विस्तार से।
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अमेरिका में ब्राज़ीली प्रवासियों का डर: ICE की छापेमारी से हड़कंप

ब्राज़ीली प्रवासियों में बढ़ी चिंता

अंतरराष्ट्रीय समाचार: अमेरिका के मैसाचुसेट्स में रहने वाले हजारों ब्राज़ीली प्रवासी इस समय गहरी चिंता में हैं। स्थानीय संगठनों के अनुसार, तीन लाख से अधिक लोग ICE एजेंटों की छापेमारी से भयभीत हैं। रोज़ाना उनके फोन पर व्हाट्सऐप अलर्ट आते हैं, जिसमें छापों की जानकारी, गाड़ियों की तस्वीरें और हिरासत में लिए गए लोगों की जानकारी साझा की जाती है। लोग अपने बच्चों को सार्वजनिक स्थानों पर पुर्तगाली बोलने से भी रोक रहे हैं। इसके अलावा, कारों पर ट्रंप के समर्थन वाले स्टिकर लगाने की सलाह दी जा रही है। सवाल यह है कि क्या ये उपाय वास्तव में उन्हें सुरक्षित रख पाएंगे या यह केवल एक धोखा है।


हिरासत की घटनाओं में वृद्धि

लोरेना बेट्स नाम की एक महिला ने प्रवासियों के लिए एक निगरानी नेटवर्क स्थापित किया है। उनका कहना है कि अचानक लापता होने वाले लोगों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। ICE एजेंट कई बार बिना न्यायिक वारंट के घरों में घुस रहे हैं, जबकि कानून इसकी अनुमति नहीं देता। समुदाय अब मानने लगा है कि उनका तरीका है—पहले पकड़ो, फिर सवाल करो। इस डर के माहौल में कई लोग अपनी नौकरियाँ छोड़ चुके हैं, क्योंकि उन्हें बाहर निकलते ही गिरफ्तारी का डर है। यह स्थिति लोगों की ज़िंदगी को एक तरह की कैद में बदल रही है।


व्हाट्सऐप: प्रवासियों की सुरक्षा का साधन

प्रवासी अब अपनी सुरक्षा के लिए व्हाट्सऐप ग्रुप्स पर निर्भर हो गए हैं। सुबह पांच बजे से ही संदेश आने लगते हैं कि कहाँ ICE की गाड़ियाँ देखी गई हैं। लोग नंबर प्लेट और वीडियो साझा करते हैं ताकि दूसरों को सतर्क किया जा सके। लेकिन इसी बीच अफवाहें भी फैलती हैं, जिससे डर और बढ़ जाता है। तकनीक उन्हें राहत भी दे रही है और तनाव भी। यह स्थिति दर्शाती है कि जब लोग डिजिटल अलर्ट पर निर्भर हो जाते हैं, तो असली आज़ादी कहीं खो जाती है।


सैंक्चुअरी शहर भी असुरक्षित

बोस्टन को सैंक्चुअरी सिटी घोषित किया गया था ताकि प्रवासियों को सुरक्षा मिल सके। लेकिन ट्रंप प्रशासन ने इसके बावजूद ऑपरेशन पैट्रियट 2.0 चलाया। मेयर मिशेल वू ने इस कार्रवाई की आलोचना की, लेकिन वॉशिंगटन से आदेश स्पष्ट थे। अब लोग कहते हैं कि घर ही उनकी आखिरी सुरक्षित जगह बची है। बाहर निकलते ही ICE का खतरा है। यहां तक कि ड्रोन फुटेज भी वायरल हो रही हैं, जिनमें एजेंटों की गाड़ियाँ दिखाई जाती हैं। यह साबित करता है कि डर अब आसमान तक पहुँच गया है।


डिपोर्टेशन का आंकड़ा बढ़ा

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, ट्रंप के लौटने के बाद चार लाख से अधिक प्रवासियों को देश से निकाला गया है। जनवरी से अब तक सिर्फ़ ब्राज़ील के दो हजार लोग वापस भेजे गए हैं। वर्तमान में साठ हजार से अधिक प्रवासी नजरबंदी केंद्रों में कैद हैं, जो अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है। समुदाय का कहना है कि ये नीतियाँ नस्ल और भाषा के आधार पर भेदभाव कर रही हैं। सवाल यह है कि क्या अमेरिका अब सपनों की जगह डर का दूसरा नाम बन गया है।


स्टिकर और कपड़े: सुरक्षा का भ्रम

कई लोग मानते हैं कि कारों पर ट्रंप स्टिकर लगाने या अमेरिकियों जैसे कपड़े पहनने से वे सुरक्षित रहेंगे। लेकिन इस पर संदेह है। प्रवासी मानते हैं कि ICE कहीं भी, कभी भी पकड़ सकती है। इस डर में अब नेटवर्क, चर्च और NGO प्रवासियों की मदद कर रहे हैं। वकीलों से जोड़ने से लेकर खाने-पीने तक की सहायता दी जा रही है। लेकिन असली आज़ादी उनसे दूर जा चुकी है। उनका कहना है कि सुरक्षा कहीं भी अब पूरी तरह से नहीं है।


भाषा भी गिरफ्तारी का कारण

सत्ताईस साल का जूनियर नामक प्रवासी कहता है कि अगर कोई टूटी-फूटी अंग्रेज़ी बोलता है तो ICE तुरंत पकड़ लेती है। उसके अनुसार, भाषा भी गिरफ्तारी का कारण बन चुकी है। वह अपनी माँ के ज़रिए ग्रीन कार्ड पाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन उसकी गर्लफ्रेंड और उसका बेटा undocumented हैं, इसलिए वह हर समय डर में जी रहा है। कई लोग अब घरों में ही कैद रहना पसंद करते हैं। यह तस्वीर बताती है कि आज का अमेरिका कैसा हो गया है।


सपनों का अमेरिका अब डर का प्रतीक

अमेरिका की ज़मीन पर आज प्रवासियों की ज़िंदगी डर में सिमट चुकी है। न व्हाट्सऐप अलर्ट चैन दे रहे हैं, न गाड़ियों पर स्टिकर सुरक्षा दे पा रहे हैं। हर आहट, हर गाड़ी और हर दस्तक अब गिरफ्तारी का संकेत लगती है। सपनों का देश अब डर की जेल में बदल चुका है। सवाल यह नहीं कि गिरफ्तारी कब होगी, बल्कि यह है कि इंसानियत कितनी देर तक बची रहेगी। आज़ादी की धरती अब असुरक्षा का घर बन गई है। और प्रवासी रोज़ अपनी असली पहचान खोते जा रहे हैं।