अरावली की नई परिभाषा: प्रदूषण के बीच विकास की चिंता
अरावली की परिभाषा में बदलाव का कारण
जब देश में प्रदूषण के गंभीर परिणाम सामने आ रहे हैं, तो अरावली की परिभाषा में बदलाव का विचार क्यों आया? यह समस्या विकास और समृद्धि की उस सोच से जुड़ी है, जिसमें स्वच्छ वातावरण की आवश्यकता को नजरअंदाज किया जा रहा है।
केंद्रीय मंत्री का स्पष्टीकरण
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री का यह स्पष्टीकरण शायद ही किसी को आश्वस्त कर सके कि अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा केवल खनन के लिए लागू होगी। इसका मतलब यह है कि रियल एस्टेट और अन्य विकास परियोजनाओं के लिए पुरानी परिभाषा ही मान्य रहेगी। भूपेंद्र यादव का यह आश्वासन भी उन चिंताओं को दूर नहीं कर सका कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में खनन की अनुमति नहीं दी जाएगी। सवाल यह है कि जब एनसीआर और देश के अन्य हिस्सों में प्रदूषण के गंभीर परिणाम सामने आ रहे हैं, तो अरावली की परिभाषा में बदलाव का विचार क्यों किया गया?
सुप्रीम कोर्ट का रुख
अरावली मामले में निराशा का एक बड़ा कारण सुप्रीम कोर्ट का रुख है, जिसने केंद्र की नई परिभाषा को आसानी से स्वीकार कर लिया। इसके अनुसार, केवल 100 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों को पहाड़ी माना गया है, जबकि अन्य क्षेत्रों में व्यावसायिक गतिविधियों की अनुमति दी गई है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस परिभाषा को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका को विचार के लिए स्वीकार किया है, लेकिन यह तब हुआ जब गुजरात से राजस्थान तक फैले अरावली क्षेत्र में हो रहे गंभीर दुष्परिणामों को लेकर जागरूक लोगों ने अपना आक्रोश व्यक्त किया।
सरकार की सफाई और जनता की चिंताएं
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि नई परिभाषा के तहत खनन के लिए केवल रणनीतिक महत्व की परियोजनाओं को अनुमति दी जाएगी। लेकिन खनन से अधिक प्रदूषण फैलाने वाली गतिविधि और क्या हो सकती है? क्या प्रदूषण का प्रभाव केवल एक क्षेत्र तक सीमित रहता है? अरावली को नुकसान कहीं भी हो, उसके परिणाम व्यापक जनसंख्या को भुगतने पड़ेंगे। दरअसल, एनसीआर के लोगों को संतुष्ट करने की कोशिश करते हुए अन्य क्षेत्रों के प्रति लापरवाही दिखाना भी एक समस्या है। सरकार को यह समझना चाहिए कि ऐसी सफाइयों से लोग संतुष्ट नहीं होंगे। बेहतर होगा कि वह अरावली को पूरी तरह से संरक्षित करे।
