आदिवासी परिवारों के लिए राशन प्राप्त करना बना चुनौती

सरकारी सहायता की कठिनाइयाँ
अल्लूरी सीताराम राजू जिले में, आदिवासी परिवारों के लिए सरकारी राशन, जैसे चावल, महीने भर का सहारा बनता है। लेकिन, दूर-दराज के गांवों में रहने वाले इन परिवारों के लिए यह सहायता प्राप्त करना एक कठिन कार्य है। हर महीने, इंजरी, गुंतासीमा और सरभन्ना पालेम जैसे गांवों के सैकड़ों आदिवासी परिवारों को राशन लेने के लिए 10 से 15 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी पड़ती है। यह यात्रा पहाड़ी रास्तों, घने जंगलों और उफनते नालों से होकर गुजरती है, जिसके बाद वे डर्लागोंडी स्थित राशन की दुकान तक पहुँचते हैं।हालांकि, इस थका देने वाली यात्रा के बाद भी, राशन मिलने की कोई गारंटी नहीं होती। सबसे बड़ी समस्या eKYC की तकनीकी खराबी है। इन पहाड़ी क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी बेहद कमजोर है, जिससे फिंगरप्रिंट स्कैनर अक्सर काम नहीं करते। कई बार अंगूठा न लगने के कारण उन्हें बिना राशन लौटना पड़ता है। एक आदिवासी महिला ने अपनी परेशानी साझा करते हुए कहा, "हम एक दिन की दिहाड़ी छोड़कर राशन लेने आते हैं। अगर अंगूठा नहीं लगता, तो हमारा पूरा दिन और कमाई दोनों बर्बाद हो जाते हैं। हमें अगले दिन फिर से आना पड़ता है।"
यह केवल एक दिन की समस्या नहीं है, बल्कि हर महीने की कहानी है। जबकि सरकार 100% eKYC पर जोर दे रही है, वहीं इन दूरदराज के क्षेत्रों में आवश्यक बुनियादी ढांचा की कमी है। नागरिक आपूर्ति विभाग के अधिकारी भी इस समस्या से अवगत हैं, लेकिन इसका कोई स्थायी समाधान अभी तक नहीं निकला है। डिजिटल युग में, इन आदिवासियों के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ भी एक अंतहीन संघर्ष बन गया है, जहां तकनीक सुविधा देने के बजाय एक नई मुसीबत बन गई है।