आपातकाल का 50वां वर्ष: लोकतंत्र का काला अध्याय

आपातकाल की घोषणा का दिन
आपातकाल का 50वां वर्ष: आज से ठीक 50 साल पहले, 25 जून 1975 की रात, एक ऐसा अध्याय लिखा गया जिसे भारतीय लोकतंत्र में काला दिन माना जाता है। यह दिन स्वतंत्र भारत के इतिहास में हमेशा के लिए अंकित हो गया। इसी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी। इस घटनाक्रम की शुरुआत 12 जून 1975 को हुई, जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इंदिरा गांधी के रायबरेली से चुनाव को अमान्य करार दिया था।
यह याचिका समाजवादी नेता राज नारायण द्वारा दायर की गई थी, जिन्होंने इंदिरा गांधी पर आरोप लगाया था कि उनके चुनाव एजेंट यशपाल कपूर ने सरकारी पद पर रहते हुए चुनाव प्रचार में भाग लिया और सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग किया।
जनता में असंतोष का बढ़ता ज्वार
जनता में असंतोष का बढ़ता ज्वार:
हाई कोर्ट के इस निर्णय ने जनता में असंतोष को और बढ़ा दिया। पहले से ही महंगाई और 1971 के युद्ध के बाद की जर्जर अर्थव्यवस्था ने लोगों को परेशान कर रखा था। गुजरात में नवनिर्माण आंदोलन और बिहार में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में छात्र आंदोलन उग्र हो चुके थे। 24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा गांधी को कुछ राहत दी, यह कहते हुए कि वह प्रधानमंत्री बनी रह सकती हैं, लेकिन संसद में मतदान नहीं कर सकतीं।
इसके अगले दिन, जयप्रकाश नारायण ने रामलीला मैदान से संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया। उसी रात, राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने इंदिरा गांधी के अनुरोध पर आपातकाल की घोषणा कर दी। आपातकाल के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया, प्रेस पर सेंसरशिप लगाई गई और विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया।
आपातकाल के कुख्यात फैसले
संजय गांधी के नेतृत्व में चलाया गया जबरन नसबंदी अभियान इस दौरान के सबसे कुख्यात फैसलों में से एक था, जिसमें लाखों गरीब पुरुषों को बिना सहमति के नसबंद किया गया। 18 जनवरी 1977 को इंदिरा गांधी ने चुनावों की घोषणा की और राजनीतिक बंदियों को रिहा किया। हालांकि, यह काला अध्याय तीन दशक बाद पाठ्यक्रम में शामिल हुआ। कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान पाठ्यक्रम को छोटा करते हुए इस अध्याय के कुछ हिस्से हटा दिए गए।