ईरान से लौटे भारतीय जायरीन की कहानी: कैसे बची जानें और मिली नई जिंदगी

भारत सरकार का 'ऑपरेशन सिंधु'
भारत सरकार ने ईरान में फंसे अपने नागरिकों को सुरक्षित वापस लाने के लिए 'ऑपरेशन सिंधु' शुरू किया है। इस अभियान के तहत उत्तर प्रदेश के बरेली से गए जायरीन का एक समूह भी सुरक्षित लौट आया है। इन लोगों की आंखों में डर और राहत का मिश्रण था, क्योंकि उन्होंने ईरान में बिताए चार दिनों को अपने जीवन का सबसे भयावह अनुभव बताया।
ईरान में बिताए दिन
इन जायरीन ने बताया कि ईरान में हर पल मौत का खतरा उनके सिर पर मंडरा रहा था। मिसाइलें उनके ऊपर से गुजर रही थीं, धमाकों की आवाजें चारों ओर गूंज रही थीं, और एयरपोर्ट बंद थे। घर लौटने की उम्मीदें हर गुजरते क्षण के साथ कमजोर होती जा रही थीं। लेकिन जब वे भारत की धरती पर वापस आए, तो इसे एक नई जिंदगी मिलने जैसा अनुभव बताया।
'कफन खरीदने की नौबत'
बरेली की नजमा बेगम ने कहा, "चार दिन ऐसे बीते कि लगा अब वतन लौटना संभव नहीं। जहां हम ठहरे थे, वहां से आसमान में मिसाइलें उड़ती दिखती थीं। एक समय ऐसा आया जब दिल बैठ गया। हमने सोचा कि अगर मौत यहीं आई तो शहादत के तौर पर स्वीकार कर लेंगे। हमने कफन तक खरीद लिया था। ईरान का माहौल बेहद तनावपूर्ण था।"
'फ्लाइट कैंसिल होने का डर'
रुखसार नकवी ने कहा, "जब हमें फ्लाइट कैंसिल होने की सूचना मिली, तो दिल जैसे कांप गया। सारी उम्मीदें टूटती नजर आईं। रातभर नींद नहीं आई। बस यही दुआ थी कि किसी तरह अपने वतन लौट जाएं। भारतीय दूतावास ने हमारी मदद की और हमें कोम से मशद ले जाया गया।"
'मिसाइलों के वीडियो बनाते लोग'
हसन जाफर ने बताया, "वहां के लोग उड़ती मिसाइलों के वीडियो बना रहे थे, जबकि हम भारतीय जायरीन डर के साए में थे। धमाकों की आवाजें दिल दहला देती थीं। मशद एयरपोर्ट पर मोबाइल फोन बंद करवा दिए गए थे। हर कोई यही दुआ कर रहा था कि किसी तरह वतन लौट जाएं।"
तिरंगे के साथ स्वागत
मुजीब जहरा ने कहा, "जायरीन को ज्यादा दिक्कतें नहीं हुईं, लेकिन डर सबके अंदर था। भारतीय दूतावास के मीसम रजा और मौलाना हैदर साहब ने हमारी बहुत मदद की। जब हम दिल्ली एयरपोर्ट पहुंचे और तिरंगा देखा, तो आंखें भर आईं। ऐसा लगा जैसे फिर से जिंदगी मिल गई हो।"
'वतन से दूर रहना सबसे बड़ा डर'
इन जायरीन का कहना है कि सबसे कठिन समय वह था जब उन्हें वतन से दूर रहना पड़ा। मिसाइलें, धमाके, बंद एयरपोर्ट और अनिश्चितता ने एक भयावह स्थिति बना दी थी। लेकिन इन मुश्किलों के बावजूद, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अब जब वे अपने देश लौट आए हैं, तो अपनों के गले लगकर बहते आंसू खुद बयां कर रहे हैं कि वतन से बढ़कर कोई सुकून नहीं होता।